उपासनाके आश्रमके निर्माण कार्यके मध्य मिले सीखने योग्य तथ्य (भाग – ७)


जब कोई वास्तु सात्त्विक होती है तो क्या-क्या हो सकता है यह मुझे उपासनाके आश्रम निर्माण करते समय सीखने हेतु मिला ! हमने आश्रमके निर्माण कार्यसे पूर्व एक छोटासा ध्यान कक्षका निर्माण सर्वप्रथम किया । उसमें हमें पिछले वर्षके चैत्र माहमें संपुटित नव चंडी पाठ एवं यज्ञ करवाना था इसलिए उसका कार्य समयसे पूर्व होना आवश्यक था ! वह सात्त्विक रहे; इसलिए हम वहां संगमरमर लगवा रहे थे ! हमें वहांके आस-पासका कोई मिस्त्रीकी जानकारी नहीं थी । एक साधकके माध्यमसे एक मिस्त्री इंदौरसे रात्रि निवास कर यह कार्य कर रहे थे । एक दिवस मैं इंदौरसे आश्रम स्थलपर उस कार्यके निरिक्षण हेतु गई तो मिस्त्रीने कहा, आपके इस क्षेत्रकी रक्षा हेतु एक नागका जोडा है, वह यहां विचरण करता है । मैंने उसे दो दिन प्रातः ब्राह्म मुहूर्तमें और एक दिवस रात्रिमें देखा है !  वह बाहर ही नीचे भूमिपर सो रहे थे जबकि वे निर्माणाधीन ध्यान कक्षमें भी सो सकते थे । मैंने उनसे कहा, “आपको भय नहीं लगा ।” तो उन्होंने बहुत ही सहजतासे कहा, “वे मुझे कुछ नहीं करेंगे, वे तो आपके यहांकी रखवाली कर रहे हैं और मैं यहां इस आश्रमके कार्य निमित्त आया हूं तो वे मुझे कैसे कष्ट देंगे ?” मुझे उनकी बात सुनकर और उनके विश्वासको जानकर आनंद हुआ ! सत्य तो यह है कि नवम्बर २०१८ से अल्प प्रमाणमें निर्माण कार्य हो रहा है; किन्तु आजतक यहां एक भी वस्तुकी चोरी नहीं हुई जबकि लगभग आठ माह तो बिना चारदीवारीके ही निर्माण कार्य चल रहा था अर्थात कोई तो शक्ति है जो हमारे आश्रमका रक्षण कर रही है !
वैसे मेरे लिए यह आश्चर्यकी बात नहीं है । आपको बताया ही था कि हमारे घरमें एक बगीचा हुआ करता था और हमारे पिताजी और माताजी उसमें बडे प्रेमसे बागवानी करते थे । वहां भी नागका एक जोडा रहता था । जब हम भाई-बहनोंने उसे प्रथम बार देखा था तो हम बहुत भयभीत हो गये थे; किन्तु हमारे पिताजीने कहा, “उन्हें कभी कष्ट मत देना, वे इस स्थानके रक्षक हैं वे हमें कोई कष्ट नहीं देंगे !” उसके पश्चात तो कई बार हमने उस जोडेको देखा था । एक बार तो वे आमके वृक्षपर संध्या समय लटककर जैसे नृत्य कर रहे हों ! आपको बताया ही था कि हमारे माता-पिता साधक वृत्तिके सद्गृहस्थ थे और हमारा घर आश्रम समान ही था जहां लोगोंका आना-जाना लगा ही रहता था ! इसलिए मुझे उस मिस्त्रीकी बातपर सहज ही विश्वास हो गया ! वैसे मुझे अभी तक वह सर्पका जोडा दिखाई नहीं दिया है किन्तु सात्त्विक वास्तुमें ऐसे रक्षकका होना भी आश्चर्यका विषय नहीं है; किन्तु यह भी एक ईश्वरीय कृपा है !


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