उपासनाके आश्रमके निर्माण कार्यके मध्य मिले सीखने योग्य तथ्य (भाग – ९)


उपासनाके आश्रमकी भूमि क्रय करनेके पश्चात, जून २०१८ में हमने सोचा कि अभी तो सम्पूर्ण भूमिमें धन अभावके कारण निर्माण कार्य आरम्भ होनेवाला है नहीं तो ऐसेमें जो भूमि यूं ही पडी है उसमें कुछ अनाज लगा देते हैं; क्योंकि बरसात आरम्भ हो चुकी थी | तो मुझे यह जानकर दुःख हुआ कि जितने भी श्रमिक एवं मिस्त्री वहां कार्य कर रहे थे सभी मुझे भूमिमें प्रथम रासायनिक खाद डालने हेतु कह रहे थे | जब मैंने उन्हें कहा कि मुझे यह खाद नहीं डालना है तो उन सबने कहा कि तब तो उपज अच्छी नहीं होगी एवं गोबरका खाद बहुत महंगा पडेगा | और जब मैंने कहा कि मुझे तो मात्र देसी गायका ही खाद चाहिए तो उन्होंने कहा यह तो यहां मिलेगा ही नहीं ! मुझे सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि हमारे आश्रमके आस-पास २०० आदिवासी बहुल गांव हैं | मैंने सोचा, स्वयं जाकर पता करते हैं, तो ज्ञात हुआ कि उनका कथन ठीक था | किसान गोबरके खादके प्रति बहुत ही उदासीन हैं एवं जो भी गोबरका खाद हमें मिल रहा था वह भैंस एवं विदेशी गायका मिश्रण था जिसमें अल्प प्रमाणमें देशी गायके भी गोबर थे | तब मैंने इंदौर एवं आस-पासके कुछ गौशालामें जाकर वहांकी स्थिति देखनेका प्रयास किया तो देखा कि अधिकांश गौशालाओंमें देशी और विदेशी गायोंके गोबर इत्यादि सबको मिलाकर खाद बनाकर समाजको विक्रय किया जा रहा है ! अर्थात देशी गायके गोबरका खाद इतनी सरलतासे नहीं मिलनेवाला यह मुझे समझमें आ चुका था | किन्तु मैंने आश्रमकी भूमिमें रासायनिक खाद न डालनेका प्रथम दिनसे ही संकल्प लिया था इसलिए उस समय मैंने जो आस-पासके ग्रामसे गाय और भैंस मिश्रित खाद मिल सकता था वह लेकर खेती आरम्भ की !
     इस प्रसंगसे मुझे दो बातें ज्ञात हुई, एक तो इस क्षेत्रमें जैविक खेतीके प्रसारकी बहुत अधिक आवश्यकता है और दूसरी बात कि आश्रम परिसरमें देशी गायोंकी गौशाला अति आवश्यक है !  ईश्वरीय कृपासे पिछले वर्ष दिसंबरसे हमारी देशी गायोंकी गौशाला आरम्भ हो चुकी है | और हमने हमारे यहां कार्य करनेवाले श्रमिक वर्गको गोबरके खादका महत्त्व बताना एवं सिखाना आरम्भ कर दिया है | यह श्रमिक वर्ग जो निर्माण कार्य करते हैं, वे अधिकांशत: अंशकालिक कृषक होते हैं यह तो आपमेंसे बहुत लोग जानते ही होंगे ! अर्थात तथाकथित हरित क्रांतिने हमारी पारंपरिक खेतीसे किसानोंका विश्वास उठा दिया है; इसलिए हिन्दू राष्ट्रमें इस पद्धतिका भी व्यापक स्तरपर लागू करने हेतु वृहद प्रयास करने होंगे ! जी हां, हमें जो भी अडचनें आती हैं, उस समस्याकी व्यापकता अभ्यास कर, राष्ट्रीय स्तरपर क्या उपाय हो सकता है, इसका चिंतन करके रख रही हूं; क्योंकि हिन्दू राष्ट्रमें जब शासनकर्ता  सात्त्विक होंगे तो उन्हें यह सब बताकर उनसे सहजतासे क्रियान्वित करवाया जा सकता है ! वैसे जो हमें इंदौर प्रांतके नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रोंमें अनुभव किया वह झारखण्ड और बिहारमें भी वहां उपासना का आश्रम निर्माण करते समय भी देखा था |
      ध्यान रहे यह कोई सामान्य समस्या नहीं है, आज बहुत ही अल्प आयुमें केशका पक जाना, अनेक प्रकारके रोग होना यह सब रासायनिक खादका ही परिणाम है ! वस्तुत: हम भोजनमें जो अन्न, फल या तरकारी लेते हैं वह तो अधिक प्रणाममें हानिकारक रसायन ही होता है और दुःखकी बात यह है कि अब तो रसायनोंसे बने हुए दूध भी सर्वत्र बिकने लगे हैं ! अर्थात निधर्मी समाजने पाश्चात्योंका अंधा अनुकरण कर अपने नैतिकता एवं जीवन मूल्योंको ताकपर रखकर अपने सर्वनाश हेतु सर्व उपाय स्वयं कर लिए हैं ! इसलिए आज जैविक खेतीका पुनः व्यापक प्रसार करनेकी आवश्यकता है एवं रासायनिक खादोंपर पूर्ण प्रतिबन्ध लगानेकी आवश्यकता है किन्तु यह आजके स्वार्थी व्यापारीवर्गद्वारा पोषित राजनितिक पक्षोंसे ऐसे निर्णयकी अपेक्षा करना मूर्खता ही होगी, अतः हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना अति आवश्यक है जहां सात्त्विक राज्यकर्ता होंगे एवं चुनाव व प्रजाको प्रलोभन देने हेतु धनकी ऐसी अपव्ययकी आवश्यकता ही नहीं होगी ! अर्थात जितना अधिक समष्टि करती हूं, हिन्दू राष्ट्रकी आवश्यकता एवं उसकी स्थापनाका मेरा संकल्प और भी ढृढ हो जाता है !


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