उपासनाके आश्रममें अतृप्त लिंगदेहोंका मृत्यु पश्चात गति हेतु आना !


दिनांक ३० अगस्त २०२० को साधकोंके लिए प्रथम ‘ऑनलाइन’ सत्संग रखा था, इसमें कुछ ऐसे सदस्य भी थे, जिनसे मैंने पहले कभी बात नहीं की थी; किन्तु वे आश्रमके ‘व्हात्सऐप्प’ गुटसे जुडकर साधना कर रहे थे । अर्थात उनसे मेरा प्रथम बार ही सत्संगमें वार्तालाप हो रहा था । सत्संगके पश्चात मैं अपने प्रसाधन गृहमें (टॉयलेटमें) जब नित्य कर्म हेतु गई तो देखा कि नलके नीचे जो द्रोणी (बाल्टी) रखी है, उसमें गीली भूमिमें चलकर चींटियां, जैसे जल समाधि ले रही हों ! मुझे कुछ क्षणके लिए आश्चर्य हुआ कि ये क्या हो रहा है ? सत्संग रात्रि सवा दस समाप्त हुआ था तो मैं वैसे ही थक गई थी; इसलिए यह सब देखकर भी अनदेखा कर सोने चली गई । आपको तो पता ही हैं कि मैं रात्रि ढाईसे तीन बजेके मध्य अपनी सेवा व साधना हेतु उठ जाती हूं । प्रातः पौने तीन बजे जब मैंने प्रसाधन गृहमें गई तो देखा कि एक-दो चींटियां अभी भी ‘बाल्टी’पर हैं और कुछ चींटियां जलसमाधि ले चुकी थीं । ये सब पूर्व रात्रिका सत्संग सुनकर गति हेतु आई थीं । जब मैं कहती हूं कि उपासनाके आश्रममें अतृप्त लिंगदेह मृत्यु पश्चात, चाहे वे अपने जीवनमें  साधनाका विरोध ही क्यों न हो करती रही हों ?, वे गति हेतु आती हैं तो कुछ लोगोंको मेरी बातें मनगढन्त लगती हैं ।
     इसी सन्दर्भमें एक और घटना हो चुकी है । अगस्त २०१० में मैं अपने पैतृक गांवमें रहती थी और ईश्वर आज्ञा अनुरूप आसपासके क्षेत्रोंमें धर्मप्रसार करती थी । २९ अगस्त २०१० के दिवस मैं और एक युवा साधिका वहींके सुप्रासिद्ध मन्दिरमें, जो एक सिद्धपीठ भी है, वहां अपने श्रीगुरुके ग्रन्थोंकी प्रदर्शनी लगाकर धर्मप्रसार कर रही थी । दो घण्टेकी सेवाके पश्चात वहांका मनोरम दृश्य देखकर मुझे ध्यान करनेकी इच्छा हुई । सेवा समाप्त कर मैंने थोडी देरके लिए जैसे ही नेत्र बन्द किए, वैसे ही सहस्रोंकी संख्यामें अतृप्त लिंगदेहें मुझसे गति मांगने लगीं । मुझे वहांके विषयमें अधिक जानकारी नहीं थी । मेरा ध्यान लगने लगा था; अतः मैंने उनसे कहा, “कुछ समय पश्चात आएं, मैं भगवानजीसे आपके लिए प्रार्थना करूंगी, अभी मुझे ध्यान करने दें !”
         मैं ध्यान करके उस साधिकाके साथ अपने निवास स्थान पहुंची तो उन्होंने जो लीला रची थी, उसे दखकर मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाई । उन्होंने मेरे निवास स्थानपर, बाहरसे लेकर मेरे भीतरवाले कक्षमें जानेके मार्गको अवरुद्ध कर दिया था और वह भी चींटियोंके रूपमें ! मेरे साथ वह युवा साधिका थी । उसने कहा, “ये इतनी सारी चींटियां कहांसे आ गईं ? अब तो सभी रोटियोंमें चींटियां लग गईं होगी और वह चींटियोंपर पांव रखते हुए भीतर जाने ही वाली थी तो मैंने कहा, “जिधर चींटियां नहीं है, उधरसे जाएं, ये सामान्य चींटियां नहीं हैं, इन्हें चोट न पहुंचाएं !”
 उसने मुझे आश्चर्यसे देखा ! उसने जब रोटीके पात्रको देखा तो पाया कि उसमें एक भी चींटी नहीं थी ! उसने कहा, “चारों ओर चींटियां हैं और रोटीमें एक भी नहीं यह कैसे ?”
     मैंने कहा, “वे चली जाएंगी, आप प्रसाद निकालें, हमें वह ग्रहणकर काली मन्दिरके सत्संगमें जाना है ।”
 मैंने उन चींटियोंसे कहा, “मेरे पास अभी समय नहीं है, पौने पांच बज गए हैं, मुझे पांच बजे सत्संगमें जाना है, आप सब वहीं आ जाएं, मां काली आप सबको गति दे देंगी !” यह मैंने उन्हें सूक्ष्मसे कहा था !
 हम प्रसाद (आपके शब्दोंमें भोजन) ग्रहणकर मन्दिर पहुंचे ! मुझे देखकर ही कुछ बच्चोंमें अनिष्ट शक्तियां वहां आरतीमें प्रकट होती थीं । वे कहने लगीं, “गति दो ! अब हम यहांसे नहीं जाएंगे । अभी समय नहीं है, बार-बार यह कहना नहीं चलेगा ।” मैंने पूछा, “कौन हैं आप लोग ? वे कहने लगीं, “अभी तो विष्णुधाममें बोला था कि काली मन्दिर जाओ, उसे कह रही थीं कि उन्हें चोट मत पहुंचाना !” उस साधिकाकी ओर संकेतकर उन्होंने कहा । उस साधिकाको तो जैसे अपने कानोंपर विश्वास नहीं हो रहा था ! मैं मुस्कुरानेके अतिरिक्त और क्या कर सकती थी ?
      जिस मन्दिरसे ये अतृप्त लिंगदेहें आई थीं, वहां अनिष्ट शक्तियोंके कष्टका निवारण किया जाता था; किन्तु वर्तमान समयमें जो कर रहे हैं, वे स्वयं उनसे आवेशित हैं; इसलिए उन लिंगदेहोंको गति नहीं मिलती थीं और उन्होंने मेरा माध्यम चुना; किन्तु वे समाजको इस माध्यमसे कुछ सिखाकर भी गईं और वह साधिका इसकी साक्षी थीं ।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution