एक व्यक्तिने कहा, “आज हिन्दी भाषामें एक नहीं, अनेक उर्दू शब्द प्रचलित हो चुके हैं, ऐसेमें उन्हें हम कैसे निकाल सकते हैं ?”


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इसका उत्तर इस प्रकार है : यदि हमने अत्यधिक श्रमकर कोई घर बनाया हो और जाने-अनजाने कोई अवांछित व्यक्ति हमारे घर घुस आए और वह वहां अपना अधिकार प्रदर्शित करे, तो क्या उस सम्बन्धमें भी हम ऐसा ही दृष्टिकोण रखेंगे ?, नहीं न ? अपितु हम हरसम्भव प्रयासकर उस व्यक्तिको अपने घरसे निकालेंगे, उसीप्रकार स्वभाषाभिमान न होनेके कारण हमने तामसिक भाषाओंको संस्कृतनिष्ठ हिन्दी भाषामें जाने-अनजाने स्थान दे दिया है; अतः यह ज्ञात होनेके पश्चात उसके शुद्धिकरण हेतु प्रयास करना, क्या हमारा नैतिक कर्तव्य नहीं है ? – तनुजा ठाकुर



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