अध्यात्म प्रसारके मध्य पिछले कुछ वर्षोंमें कुछ खरे संतोंके आश्रमोंसे परिचय हुआ है और मैंने पाया है कि जब उस आश्रमके मुखिया पदपर आसीन संतको कोई योग्य उत्तराधिकारी नहीं मिलते हैं तो वे अपने देह-त्यागके पश्चात उनकेद्वारा किया जा रहा धर्मकार्य निर्विघ्न होता रहे, इस हेतु एक न्यासकी स्थापनाकर, सर्वकार्य न्यासके योग्य सदस्योंको सौंप देते हैं ! वहीं आजके नेता, चाहे उनके पुत्र या पत्नीमें राज्य करनेकी क्षमता हो या नहीं, वे उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाने हेतु सर्व अनुचित हथकंडे अपनाते हैं, कुछ तो यदि स्वयं भ्रष्टाचारके दोषी पाए जाते हैं और कारागारमें रहते हैं तो अपनी अशिक्षित पत्नी या अपने कुपुत्रको अपनी कुर्सीपर बैठा देते हैं ! ऐसी राजनीतिको परिवर्तित करने हेतु हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना अपरिहार्य है !
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