स्विट्जरलैंडकी बहुराष्ट्रीय प्रतिष्ठान (कम्पनी) नेस्लेद्वारा उत्पादित मैगीमें परिरक्षक (preservative) के रूपमें सीसा एवं अन्य हानिकारक रासायनिक द्रव्य जैसे ‘मोनोसोडियम ग्लूटामेट’ परोसा जा रहा है, जिसे ‘मसाले’में डाल तो दिया जाता है; किन्तु नामपत्रपर (लेबलपर) इसकी जानकारी नहीं दी जाती है, जो ऐसे सुप्रसिद्ध प्रतिष्ठानोंद्वारा एकप्रकारका ऐसा छल है जो मानवताको भी लज्जित करता है; क्योंकि एक तो विज्ञापनके माध्यमसे इस भोज्य पदार्थको बच्चोंका सर्वप्रिय भोजन बना दिया गया, जबकि यथार्थ तो यह है कि ऐसे भोज्य पदार्थके नामपर वे एकप्रकारसे विषका विक्रय कर रहे होते हैं । यह सिद्ध करता है कि विदेशी प्रतिष्ठानोंके उत्पाद मानव देहके लिए कितने घातक होते हैं और हमारी ‘सरकार’ ऐसे प्रतिष्ठानोंको विदेश जाकर यहां आकर निवेश करनेको कहती है, यही इस देशकी विडम्बना है । कुछ दिवस पूर्व ‘जॉन्सन एण्ड जॉन्सन’ प्रतिष्ठानद्वारा बच्चोंके लिए बनाए जा रहे, टेल्कम पाउडरमें भी शिशुओंके लिए घातक ऐसे रसायन पाए गए हैं जिससे कर्करोग (कैंसर) हो सकता है । कोक, पेप्सी इत्यादि पेय पदार्थोंमें कीटनाशक होनेके प्रमाण इससे पूर्व ही सिद्ध हो चुके हैं, तब भी ये पेय पदार्थ, इस देशकी भ्रष्ट व्यवस्थाके कारण भारतीय विपणनकेन्द्रोंमें (बाजारोंमें) अपनी पकड बनाये हुए हैं, यह सबसे चिंताजनक तथ्य है । वस्तुतः सरकारको त्वरित ऐसे उत्पादकोंके मानकोंकी जांचकर उनपर कार्यवाही कर उन्हें कठोर दण्ड देना चाहिए और भारतसे सदैवके लिए निष्काषित करना चाहिए ।
मैगीके अभीतक जितने भी ‘नमूने’ जितने भी राज्योंसे एकत्रित कर प्रयोगशालामें भेजे गए हैं, सभीमें हानिकारक रसायनोंका प्रमाण अत्यधिक पाया गया है; किन्तु यदि हमारी सरकारने पूर्व सरकारों समान ढिलाई की तो यह कार्यवाही भी मात्र ‘औपचारिक’ रह जाएगी एवं कोक और पेप्सी समान अनेक घरोंमें ऐसे उत्पाद ग्रहण किए जाते रहेंगे । दुःखकी बात यह है कि यह सब जानते हुए भी आज अनेक पढे-लिखे वर्गके लोग बहुराष्ट्रीय उत्पादोंका प्रयोग करते रहते हैं । मैगीको घर-घर प्रसारित करने हेतु अनेक सुप्रसिद्ध ‘नट’ (अभिनेता-अभिनेत्रियां) भी उतने ही उत्तरदायी हैं; अतः उन्हें भी दण्डित करना आवश्यक है; क्योंकि हमारा यह विवेकशून्य समाज, इन नटोंद्वारा प्रचारित उत्पादोंका नेत्र मूंदकर उपयोग-उपभोग करना आरम्भ कर देता है । बिहारमें एक न्यायालयने इसके ‘ब्रांड एम्बेसेडर’ अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित व प्रीटी जिंटाके विरुद्ध प्राथमिकी (एफआईआर) प्रविष्ट करनेका आदेश दिया है जो एक अभिनन्दनीय प्रयास है | इस देशकी न्याय व्यवस्थाद्वारा ऐसे नटोंको कठोरतम दण्ड देना चाहिए; क्योंकि धनके लोभमें यह वर्ग समाजको सदैव दिशाभ्रमित करता है ।
यह तो समान्यज्ञान है कि किसी भी भोज्य पदार्थके नष्ट होनेकी एक सीमा होती है और जो उससे अधिक समयतक रहे, तो इसका अर्थ ही है कि उसमें कीटाणुओंको नष्ट करने हेतु ऐसे पदार्थ डाले जाते होंगे, जो मानव देहके लिए हानिकारक हैं; किन्तु पाश्चात्य संस्कृतिके अन्धानुकरणने हम भारतियोंके विवेकको इस सीमातक नष्ट कर दिया है कि हम क्या खा रहे हैं ?, क्या पी रहे हैं ?, इसका विचार भी नहीं करते हैं । आज, ‘रेडी टू ईट, प्रोसेस्ड फूड, जंक फूड’, यह सब महानगरोंके एवं विशेषकर बच्चों एवं युवावर्गके भोजनका अविभाज्य अंग बन चुका है । हमारी भारतीय संस्कृतिमें तुरन्त पके हुए सात्त्विक भोजन करनेकी सुन्दर पद्धति थी और यहांतक कि अचार और पापडको भी तमोगुणी भोज्य पदार्थमें गिना जाता है; किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति प्रश्चात् राज्यकर्ताओंके लोभ, स्वार्थ एवं सत्ताके मदने विकासके नामपर ऐसे प्रतिष्ठानोंको आमंत्रित उन्हें विष विक्रय करने हेतु अनुमति देकर किसप्रकारकी दिशाहीनता समाजमें निर्माण की है, यह स्पष्ट देखा जा सकता है ! क्या इनके पाप क्षमा करने योग्य हैं ? – तनुजा ठाकुर (३०.५..२०१५)