वन्दे मातरमका मूल स्वरूप !


वंदे मातरम् भारतका राष्ट्रीय गीत है जिसकी रचना श्री बंकिमचंद्र चटर्जीद्वारा की गई थी। इन्होंने ७  नवम्बर, १८७६  ई. में बंगालके कांतल पाडा नामक ग्राममें इस गीतकी रचना की थी। वंदे मातरम् गीतके प्रथम दो पद संस्कृतमें तथा शेष पद बंगाली भाषामें थे।  गीतके पहले दो छंदोंमें मातृभूमिकी सुंदरताका गीतात्मक वर्णन किया गया है, परंतु १८८० के दशकके मध्यमें गीतको नया स्वरूप मिलना आरम्भ हो गया। ऐसा इसलिए हुआ; क्योंकि बंकिमचंद्र ने १८८१  में अपने उपन्यास ‘आनंदमठ’ में इस गीतको सम्मिलित कर लिया । राष्ट्रकवि श्री रवींद्रनाथ टैगोरने इस गीतको स्वरबद्ध किया और पहली बार १८९६  में कांग्रेसके कलकत्ता अधिवेशनमें यह गीत गाया गया। अरबिंदो घोषने इस गीतका आंग्ल भाषामें अनुवाद किया । यह गीत स्‍वतंत्रताके संग्राममें लोगोंके लिए प्ररेणाका स्रोत था। क्या आपको वंदे वन्दे मातरम् के मूल स्वरूप ज्ञात है यदि नहीं तो इसे पढें और साझा करें !
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
शस्यशामलां मातरम् ।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं
सुखदां वरदां मातरम् ।। १ ।। वन्दे मातरम् ।
कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले ।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम् ।। २ ।। वन्दे मातरम् ।
तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वं हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडि
मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ।। ३ ।। वन्दे मातरम् ।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलां
सुजलां सुफलां मातरम् ।। ४ ।। वन्दे मातरम् ।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां
धरणीं भरणीं मातरम् ।। ५ ।। वन्दे मातरम् ।।



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