साधक किसे कहते हैं ?


अपने घर एवं व्यवसायको संभालते हुए साधना करनेवाले ‘उपासना’ के दिल्लीके साधक दंपति श्री एवं श्रीमति गोयलसे अन्य गृहस्थ साधक बोध लें –
सर्वप्रथम श्रीमति गोयलके विषयमें मैंने जो विशेष साधकत्वके गुण परिलक्षित होते हुए दिखाई दिये वह बताती हूं –

सेवा परिपूर्ण करना
श्रीमती गोयलकी एक विशेषता है सेवाको परिपूर्णतासे करना | अगस्त २०१२ से वे ‘उपासना’ से जुडी हैं और तबसे उनकी प्रत्येक सेवामें परिपूर्णताकी झलक मिलती है | उन्हें कोई भी सेवा देनेके पश्चात मैं निश्चिंत हो जाती हूं क्योंकि उनकी सेवामें चूककी संभावना नगण्य होती है | जब साधकमें यह गुण होता है तो वह आध्यात्मिक प्रगति हेतु इस गुणका उपयोग सेवामें अति सुंदर पद्धतिसे कर सकता है | परिपूर्ण सेवा करनेवाले साधकमें सुव्यवस्थितता यह गुण भी होता है परिणामस्वरूप समष्टि और व्यष्टि जीवनमें अनुशासनबद्धता देखी जा सकती है |
जिज्ञासु वृत्ति होना
उनकी वृत्ति भी जिज्ञासु हैं, और वे अध्यात्मका ज्ञान बढे इस हेतु ग्रन्थोंका अभ्यास करनेका प्रयास करती हैं, मेरे लेख जो फेसबुक या ब्लॉगपर डालती हूं उसे भी वे नियमित पढती हैं और सबसे अच्छी बात यह है कि उसे अपने जीवनमें उतारनेका प्रयास करती हैं |
उनके घरमें तीव्र स्तरका पितृ दोष भी है और उसके निवारण हेतु भी वे जिज्ञासापूर्वक अनेक वर्षसे कुछ न कुछ आध्यात्मिक उपाय सीखती रही है और करनेका भी प्रयास करती रहीं हैं |
क्षात्रवृत्तिका होना
उन्हें अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट है, इस कारण योग्य साधना आरंभ करते ही वे सीढीयोंसे गिर पडीं तब भी उनकी साधनाके प्रति न कोई विकल्प आया और न ही उनकी तडप कम हुई एवं उनकी सेवा और साधनामें निरंतरता बनी रही | ध्यान रहे जब घरमें तीव्र स्तरका कष्ट हो और कोई साधक योग्य साधना आरंभ कर दे तो कई बार अनिष्ट शक्ति साधकके मनमें विकल्प लानेके लिए उन्हें कुछ कष्ट दे सकती हैं और जिन साधकोंमें भाव और क्षात्रवृत्ति होता है वे अनिष्ट शक्तिके इस संकेतको समझ अपनी क्षात्रवृत्तिसे साधना बढाकर उनका सामना करते हैं | यह गुण श्रीमति गोयलमें हैं | कई बार उन्हें अनिष्ट शक्तियां साधनाके प्रति या हमारे प्रति विकल्प डालती हैं; परंतु वे उसपर क्षात्रवृत्तिसे मात कर अपनी सेवा और साधनामें निरंतरता बनाए रखती हैं | चाहे मनकी स्थिति विपरीत हो या घरक़ी, वे प्रत्येक स्थितिसे बाहर निकलकर सेवा करने हेतु क्षात्रवृत्तिसे प्रयास करती हैं |
बुद्धिका अति उत्तम प्रकारसे उपयोग करना
जब वे मेरे पास आयीं थीं तो कुछ व्यावहारिक अपेक्षाकी पूर्ति हेतु आयीं थीं; परंतु जैसे-जैसे उन्हें अध्यात्म और साधना, अपने मनुष्य जीवनका महत्त्व एवं उद्देश्य समझमें आने लगा वैसे ही वे निष्काम साधनाके ओर प्रवृत्त होने लगीं |
उन्हें जब भी कोई सेवा दिया जाता है तो साधनाके तत्त्वोंका विचार कर बुद्धिका उपयोग कर, वे सेवा करनेका प्रयास करती हैं | यद्यपि आरंभमें वे अपनी बुद्धिका उपयोग अनावश्यक विश्लेषण करनेमें लगाती थीं; परंतु भाव जागृतिके प्रयास आरंभ करनेपर अब जब सेवा बताया जाता है तो वे उसे उत्तम प्रकारसे करने प्रयास करने लगी हैं |
सात्त्विक जीवन पद्धतिको आचरणमें लाना
जब तक हम सात्त्विक नहीं होंगे तब तक हमारी आध्यात्मिक प्रगति द्रुत गति से नहीं हो सकती है अतः सात्त्विक कैसे रहें इसका वे सतत विचार करती हैं और उसे जीवनमें उतारनेका प्रयत्न करती हैं | जबसे उन्होंने साडी एक सात्विक परिधान है यह जाना है तबसे वे अधिकतर साडीमें पहननेका प्रयास करती हैं, साथ ही कुमकुमका टीका लगाना, काले वस्त्र  या पाश्चात्य संस्कृति अनुसार पुरुषोंवाले वस्त्र न पहनना, जैसे अनेक कृति वे झटसे अपने जीवनमें उतार लिया है  | यह गुण साधककी साधनाके प्रति लगन एवं गंभीरताको दर्शाता है | रंगोली भी यदि बनानी हो तो वह सात्विक ही बनें, इस हेतु हमारे श्रीगुरुके ग्रन्थोंसे सात्विक आकृतिवाले रंगोली बाननेका प्रयास करती हैं | व्रत –त्योहार भी शास्त्रानुसार करनेका प्रयास करती हैं | पहले वे कर्मकांडमें अटकी हुई थीं, जब उन्हें बताया कि उपासना कांड कलियुगकी योग्य साधना और उनके आध्यात्मिक स्तरएक अनुरूप है तो वे उसे आचरणमें लानेका प्रयास करने लगीं हैं |

घरमें मनसे सतत सेवामें रहनेका प्रयास करना
वैसे तो वे एक गृहिणी हैं और गृह कार्यसे समय निकालकर अपना व्यवसाय भी करती हैं; परंतु उनका सदैव ध्यान सेवाकी ओर होता है, वे सभी कार्योंमें सुंदर सामंजस्य बनाकर सर्व कृति एवं उत्तरदायित्वका निर्वाह करनेका प्रयास करती हैं | वे मनसे सदैव सेवा, सेवाकेन्द्र या मेरे बारेमें विचार करती हैं | कुछ दिवस पूर्व वे अपने वैयक्तिक कार्य हेतु विदेश गयी थीं वे वहांसे मेरे कुर्सी हेतु एक गद्दा लेकर आई जिसकी आवश्यकता है यह सेवाकेन्द्रमें रह रहे साधकोंको भी ध्यान नहीं आया |
अक्टूबर 2013 में वे वैष्णव देवी दर्शन हेतु गईं थीं तो वहां भी जब थोडा समय मिला तो वे बाजारमें हमारी संस्था ‘उपासना’ के कार्य हेतु और मेरे लिए क्या ले सकती हैं यह ही विचार कर रही थी और वहांसे मेरे लिए ऊनी कडपे लेकर आयीं जिसकी मुझे इटली जाने हेतु आवश्यकता थी और जब वे आयीं और मैंने उन्हें कहा तो वे हंसकर बोलीं हम पहले ही वह लेकर आए हैं, ऐसा अनेक बार हुआ है कि जो मुझे चाहिये या सेवाकेन्द्रमें आवश्यक है और मैं उन्हें बताती हूं तो वे उस वस्तुको  पहले ही लेकर आई हुई होती हैं | वैसे ही हमें इस वर्ष ‘उपासना’ के स्थापना दिवसके वर्षगांठके कार्यक्रम निमित्त संतोंको अर्पण करने हेतु ऊनी शाल चाहिए थे, यह मैंने एक बार बताया था, यह भी उन्हें ध्यान रहा और चूंकि वहां वे थोडे सस्ते मिले अतः वे लेकर आयीं |
जब कभी अपने किसी वैयक्तिक या गृह-कार्यसे दिल्लीमें बाजार जाती हैं तो सेवाकेन्द्रके लिए कुछ लाना है क्या यह मुझसे अवश्य पूछती हैं और कई बार तो वे स्वयं ही जो आवश्यक हो वह ले आती हैं | सेवाकेन्द्रके सभी साधकोंको भी दोनों पति –पत्नीका आधार लगता है और मेरे दिल्लीमें नहीं रहनेपर वे सेवाकेद्र और वहां रह रहे साधकोंका ध्यान रखते हैं |

व्यष्टि साधनाके प्रति तडपका होना
दिल्लीमें सेवाकेन्द्र बननेसे पूर्व मैं पाच छः बार धर्मप्रसारकी सेवा हेतु उनके घरपर रुकी हूं | मैंने पाया कि वे सुबह सूर्योदयसे पूर्व उठ जाती हैं और नित्य कर्मसे निवृत्त होकर स्नान इत्यादि कर पूजा और नामजप करती हैं | वे आध्यात्मिक उपाय आदि करनेमें सतर्कता रखती हैं | जब भी उनसे सेवाके मध्य कोई चूक होती है तो वे स्वयं अपने चूक सेवाकेन्द्रमें चूक लिखने हेतु बने फलकपर लिखती हैं और फेसबुकमें भी क्रियाशील साधकोंका एक गुट उसमें लिखती हैं | मात्र अंतर्मुख साधक ही इस प्रकारके प्रयास कर सकते हैं |

समष्टि कार्य हेतु तडपका होना
उनके परिवारके अन्य सदस्य और समाज भी साधना करे, इस हेतु उनकी तडप और उस दिशामें उनके प्रयास प्रशंसनीय हैं | वे मुझे जोधपुर ले गयी थी, जहां उन्होंने अपनी बहनके घर तीन दिन प्रवचनका आयोजन करवाया था और जहां लगभग तीस परिवारने उनके प्रयासोंका लाभ उठाया | वहां भी मेरे रहने, भोजन और स्वास्थ्यका ध्यान रखा साथ ही प्रसारके अति सुंदर प्रयास किए | साथ ही वे मेरे साथ विदेश भी जाकर धर्मप्रसारकी सेवा और मेरे स्वास्थ्यका ध्यान रखकर सेवा की | अपने घरपर भी परिवारके  किसी सदस्यके जन्मदिवस निमित्त प्रवचन आयोजित करवाया था | ‘उपासना’ के मार्गदर्शनमें साप्ताहिक सत्संग आरंभ कर स्वयं विषय पढकर सत्संग लेना आरंभ किया | इस बार दीपवालीमें सभी मित्रों एवं परिचितोंको हमारे श्रीगुरुके मार्गदर्शनमें बनीं आध्यात्मिक कष्टोंके उपाय संच सभीको भेंट किए |
सितंबर 2013 में उन्हें एक सामाजिक संस्था जिसकी वे और उनके पति सदस्य हैं, वहां उपस्थित होने हेतु उन्हें आमंत्रण मिला था और उन्हें ज्ञात हुआ कि इस बार भी उस संस्थाके कुछ सदस्योंका पाश्चात्य संस्कृति अनुसार जन्मदिन मनाया जाएगा तब उन्होंने उन सदस्योंसे पहले ही भेंट कर उन्हें सात्विक पद्धतिसे औक्षण कर जन्मदिन क्यों मानना चाहिए उसके बारेमें बताया और वैसे ही सबसे करवाया भी |

श्रीमती गोयलकी साधकत्वसे संबन्धित कुछ अन्य प्रसंग :

• बाहरका भोजन मेरे स्वास्थ्यके दृष्टिसे हानी पहुंचाता है यह जाननेपर पिछले वर्ष ३० नवंबरसे ९ दिसंबर तक दिल्लीके  एक होटलमें रुकी थी तब वे मुझे प्रतिदिन डिफ़ेस कॉलोनीसे करोलबाग दोपहरका भोजन और संध्या समयका जलपान भिजवाती थी उसमें भी उनके गुण और भाव दोनों ही परिलक्षित हो रहे थे और जब मैं उनकेद्वारा भेजे गए भोजनकी थैली खोलकर देखती तो उनकी नियोजनकुशलता, भाव, व्यवस्थितता यह सब गुण देखकर मन प्रसन्न हो जाता था |
• वे अपने कुछ व्यवसाय भी करती हैं, परंतु साथ ही अपने परिवारका ध्यान रखती हैं, सेवा भी करती हैं और उनकी व्यष्टि साधनाका क्रम भी नहीं टूटने देती हैं | इससे समझमें आता है कि वे एक कुशल प्रबन्धक हैं |
• उनमें त्यागकी वृत्ति भी है | अपने पारिवारिक जीवनमें भी उनके त्यागकी कुछ बातें उन्होंने सहज भावसे साझा किए जो उनके साधकत्वका परिचय देती है | अतः ‘उपासना’ के माध्यमसे साधना करनेपर भी उनके तन, मन और धनके त्याग अति सहजतासे आरंभ हो गए |
• उनके अति सराहनीय प्रयासोंके कारण उनके ऊपर जोधपुर प्रवासमें उनपर प्रचंड प्रमाणमें आध्यात्मिक उपाय हुए और इस संबंधमें उन्हें अनुभूति भी आयी और उनके कष्ट भी कम हो गए |
• अपने पुत्रोंमें भी वे साधना और धर्मप्रेम हेतु अच्छे संस्कार डालनेका प्रयास करती रहती हैं |
उनके इन्हीं प्रयासोंके कारण वे द्रुत गति आध्यात्मिक प्रगति भी कर रही हैं | उनके उत्तरोत्तर आध्यात्मिक प्रगति हेतु मेरी शुभकमनायें !!

अब एक वर्षसे भी कम अवधिमें एक प्रतिशत आध्यात्मिक प्रगति करनेवाले दिल्लीके साधक श्री गोयलके कुछ अनुकरणीय गुणोंके बारेमें बताना चाहूंगी |
श्री गोयलसे मेरा परिचय प्रथम बार जून २०१३ में उनके कार्यालयमें हुआ, उन्हें देखकर उसी क्षण ज्ञात हो गया कि उनका आध्यात्मिक स्तर अच्छा है और वह अभी तक सूक्ष्मसे किसी मार्गदर्शककी राह देख रहे थे, मुझे समझते देर न लगी उनके घर उन्होंने अपनी साधनाके बलसे आकृष्ट किया है, यद्यपि उनके घर जानेका माध्यम कोई और बना और मैं उनकी पत्नीसे परिचित हुई | उन्होंने तुरंत साधनामें न रुचि दिखाई और न ही साधना आरंभकी; परंतु मुझे पता था, वे निकट भविष्यमें निश्चित ही साधना करेंगे | उनके कुछ गुण जो मैंने देखे, वह बताती हूं |
• प्रथम बार उनके घर जानेपर मुझे अत्यधिक शारीरिक कष्ट हुआ, क्योंकि उनके कार्यालयमें किसी शक्तिशाली अनिष्ट शक्तिका कष्ट था और यद्यपि वे मुझसे पहली बार मिल रहे थे और मैं उनकी पत्नीसे एक बार मिल चुकी थी; परंतु मुझे हो रहे कष्टसे वे तुरंत व्यथित हो गए | यह उनके प्रेमभावको दर्शाता है और उन्हें ग्लानि हुई कि उनके कारण मुझे कष्ट हुआ और मुझसे क्षमा मांगने लगे, यह भाव स्पष्ट रूपसे उनकी भाव-भंगिमा और बातचीतमें झलक रहा था | मेरे कारण दूसरोंको दुख न हो, यह साधकत्वका लक्षण है |
• उनका स्वभाव अत्यधिक मिलनसार है, वे कुछ क्षणोंमें किसीको अपना बनानेकी कला जानते हैं | प्रेमभाव यह प्रीतिका आरंभिक चरण है, यह गुण उनमें हैं | ऐसे साधक यदि भक्तियोग अनुसार साधना करते हैं तो शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति करते हैं |
• पूर्व संचित और ईश्वरीय कृपासे मां लक्ष्मीकी कृपा उनपर है; परंतु अधिकांशतः मैंने पाया है कि चाहे किसीके पास धन हो, या न हो, आजकल लोगोंमें धनके त्यागकी भावना अत्यधिक कम है; परंतु उनमें ऐसा नहीं है | उनसे त्याग सहज ही होता है, उसके लिए उन्हें शास्त्र नहीं बताना पडा है, यह मैंने पिछले वर्ष गुरु पूर्णिमाके समय जब वे मुझसे अंश मात्र ही परिचित होंगे, तब भी वे सभी कार्यमें अपना धनसे तो योगदान दे ही रहे थे, शरीरसे भी सेवा कर रहे थे और यह तब संभव होता है जब मनमें ऐसी भावना हो |
• आतिथ्य संस्कार, जिसका आज सर्वाधिक क्षरण हुआ है, वह उनमें कूट-कूट कर भरा है, जिस दिनसे उन्हें पता चला है कि मुझे फल प्रिय है, उस दिनसे लेकर आज तक वे मुझे स्वयं फल खरीद कर और काट कर खिलाना नहीं भूलते, या सेवाकेन्द्रमें फल लाना नहीं भूलते, वैसे वे सभीको खिलाते हैं, यह न समझें कि मात्र मुझे खिलाते हैं, इसकी प्रचीति उनसे संपर्कमें आनेवाले सभी साधकोंने ली है | जब भी कोई कार्यक्रम हो, तो उनका और उनकी पत्नीका आतिथ्य भाव देखते ही बनता है | आजके सभी साधकोंको उनसे यह गुण सीखना चाहिए | अतिथि ऋण, पांच ऋणोंमेंसे एक ऋण है, जो पांच महायज्ञके अंतर्गत आता है, जिसका पालन करनेसे अन्नपूर्ण मांकी सदैव उस कुलपर कृपा रहती है |
• वे ‘उपासना’ से मनःपूर्वक कब जुड गए, कब सेवा करने लगे कब त्याग करने लगे, यह मैं आपको नहीं बता सकती; परंतु मैंने अपनी स्वभाव अनुरूप जैसे ही चूक बताना आरंभ किया, उन्होंने उसे सहज स्वीकार किया | चूक स्वीकार करना, यह साधकत्व है |
• तीक्ष्ण बुद्धि और एक कुशल व्यवसायी होते हुए भी उनका मन, बालकके समान निश्चल है और इसकी प्रचीति मुझे इंदौरमें एक संतके आश्रममें मिली जहां वे सबके समक्ष अपने मनके द्वंद्व, स्वीकार कर, एक छोटे बच्चे समान रोने लगे | एक पुरुषका इस प्रकार सबके समक्ष रोना, यह उनके भोले भावको दर्शाता है और इस कारण उनकी भाव जागृति भी हो गयी | (सामान्य स्तरपर पांच-दस वर्ष लगातार साधना करनेपर ही भाव जागृति होती है,) ईश्वरको चतुर, कृतघ्न और चालाक व्यक्ति अच्छे नहीं लगते, भोले और सरल हृदयवाले उन्हें प्रिय होते हैं) |
• यद्यपि वे एक यशस्वी व्यवसायी हैं; परंतु साधना और व्यवसाय दोनोंमें भली-भांति सामंजस्य स्थापित करते हैं और प्रत्येक परिस्थितिमें वे सेवा हेतु तत्पर रहते हैं | दिल्ली हवाई अड्डे या दिल्ली रेल्वे स्टेशनसे सुबह तीन बजे या मध्य रात्रि मुझे या साधकोंको लाने ले जानेकी सेवा वे प्रेम एवं तत्परतासे करते हैं |
• प्रातः काल शीघ्र उठना, अपने स्वास्थ्यके प्रति सतर्क रहना, गृह कार्यमें भी यथाशक्ति योगदान देना, साधना, परिवार और व्यवसायमें समतोल बनाए रखना, यह सब उनके उच्च प्रबंधनके गुणोंको दर्शाता है |
• पिछले वर्ष गोवा जाते समय, जब मैंने सनातनके तीस संतोंके लिए कुछ अर्पण भेजने हेतु उन्हें कुछ भेंट लेनेके लिए कहा, तो उन्होंने स्वयं भी उन सभी संतोंके लिए भेंट ली और मैंने उन्हें जो मैंने भेंट लेनेके लिए कहा था, उसके भी नाम मात्र पैसे लिए | संतोंके प्रति भाव निर्माण करने हेतु मुझे इतने पापड बेलने होते हैं, वह मैं आपको बता नहीं सकती; परंतु उन्हें यह सब कुछ बताना ही नहीं पडा, न ही वे मेरे लेख पढते हैं, या पढे हैं, न ही इससे पूर्व कोई सत्संग, प्रवचनमें नियमित गए हैं, और न ही किसी संतकी सेवाकी है, तब भी उनके त्यागकी वृत्ति ऐसी है, इससे उनके पूर्व जन्मकी साधनाका ठोस आधार ध्यानमें आता है | ध्यान रहे, हमारे अंदर त्याग, प्रेमभाव, सेवाभावकी वृत्ति जितनी अधिक होती है, हमारी साधना भी उतनी ही ठोस होती है |
• मैंने उन्हें कुछ भी उपासनाके सेवाकेन्द्र हेतु क्रयके लिए बताया, वे उस पैसेको अपना पैसा मानकर, एक-, पैसेकी बचत कर योग्य सामान, योग्य दुकान और स्थानसे लाए, चाहे उसके लिए उन्हें दिन भर अपने व्यस्त कार्यालयीन सेवाका त्याग करना पडा हो | धर्म-कार्य हेतु जो धन अर्पणमें आता है, वह ईश्वरने किसी न किसीके माध्यमसे दिया होता है, अतः जब साधक उसका उपयोग योग्य प्रकारसे करते हैं तो उनपर ईश्वरीय कृपा तो होनी ही है |
• सितंबर २०१३ में वे और एक स्त्री साधक मेरे साथ नेपाल धर्मप्रसार हेतु गए थे, वहां भी उन्होंने भावपूर्ण सेवा कर अपने साधकत्त्वका परिचय दिया | उनसे सेवाके मध्य कोई चूक न हों इस हेतु श्रीमती गोयलने उन्हें सब बताया था और वे उन सभी तथ्योंको ध्यान रख सेवा कर रहे थे, इससे पहले उन्होंने कभी धर्मप्रसारकी सेवा नहीं की थी परंतु वे अत्यधिक सतर्क होकर सेवा कर रहे थे अतः सेवाके मध्य अधिक चूक नहीं हुए | सेवाके मध्य होने वाले चूक वे स्वयं भी निरीक्षण कर या जो मैं उन्हें बता रही थी उसे फेसबुकमें क्रियाशील साधकोंके गुटमें मेरे बिना बताए प्रतिदिन लिख रहे थे |
• उन्होने अभी तक जो साध्य किया है, उसमें उनकी जीवन-संगिनी और उपासनाकी साधिका, श्रीमती गोयलका महत्वपूर्ण योगदान है, यदि मैं यह उल्लेख न करूँ, तो यह लेख अधूरा रहेगा |

दोनों पति–पत्नी अध्यात्मपथिक बन, साधनारत रहें और उतारोत्तर आध्यात्मिक प्रगति कर, ईश्वरसे एकरूपता साध्य करें, यह श्रीगुरुचरणोंमें मंगलकामना है !



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