यदि गुरु हमें डांटें, गाली दें, या मारें तो क्या करना चाहिए ?
प्रश्न – गुरुके साथ चलनेके समयपर यदि शिष्य गुरुसे आगे चलता है, तो गुरु चिल्लाते हैं, “तुम्हारी इतनी हिम्मत, मुझसे आगे चल रहे हो ?” यदि शिष्य पीछे छूट जाए, तो गुरु पुनः चिल्लाते हैं, “जब तुम मेरे शिष्य हो, तो पीछे क्यों छूट रहे हो ?” और यदि शिष्य गुरुके साथ चले, तो गुरु फटकार लगाते हैं, “क्या तुम मुझसे प्रतिस्पर्धा कर रहे हो?” तो फिर, शिष्य का वर्तन कैसा हो? और इसके पीछे गुरुका प्रयोजन क्या है ?
बाबा (परम पूज्य भक्तराज महाराज ) : वास्तवमें, गुरुकी डांटको अधिक महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि गुरुका प्रयोजन शिष्यको सतत ईश्वरका नामजप सिखानेका रहता है, तो शिष्य गुरुकी डांटसे व्यथित न हो। एक बार श्री अनंतानंद साईष, बाबाके गुरुको किसी स्थान पर घोडा-गाडीसे जाना था। उन्होंने दीनू (बाबाका पूर्व नाम) को गाडीमें बैठनेको कहा। किन्तु, यह सोच कर कि ‘मैं गुरुके साथ किस प्रकार बैठूं ?” दीनू, गाडीपर बैठनेके स्थानपर नंगे पांव गाडीके पीछे दौड़ते रहे। तब गुरुने दीनूको अपने पादुकाएं दीं, जिससे दीनूके पांव चोटग्रस्त न हों। किन्तु उन्होंने वह भी नहीं पहनीं कि ‘मैं गुरुकी पादुकाएं किस प्रकार पहन सकता हूं ?’ और घोडा गाडीके पीछे दौडते रहे और पादुकाओंको अपनी छातीसे लगाये रखा। तब गुरु उनपर चिल्लाये, बाबासे यह पूछ जाने पर, ” क्या गुरु आपकी आज्ञाकी अवहेलनापर चिल्लाये ?” उनका उत्तर था – ‘नहीं’। इसके आगे, बाबाने उत्तर नहीं दिया कि वे उनपर क्यों चिल्लाये थे। संक्षेपमें, संत या गुरुकी डांटका विश्लेषण करनेके स्थानपर, ईश्वरका सतत नामजप करना और उनकी सेवा करते रहना चाहिए, क्योंकि अंततः वास्तविक कारण जानना बुद्धिसे परेका विषय है।
परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेद्वारा लिखित ग्रंथ ‘गुरुकृपयोग’ से उद्धृत
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