यज्ञोपवीत क्यों धारण करना चाहिए ? (भाग – ४)


मनुष्य जीवनमें यज्ञोपवीत संस्कार एवं जनेऊ धारण करनेका अत्यधिक महत्त्व है, इसलिए वैदिक संस्कृतिमें यह त्रिवर्णियोंके लिए एक अति आवश्यक सोलह संस्कार अंतर्गत संस्कार कर्म माना जाता था, इसके बिना गुरुकुलमें विधिवत विद्या अध्ययनका पात्र छात्रको नहीं माना जाता था । वस्तुत: यज्ञोपवीत संस्कारके पूर्व मनुष्यको संस्कार विहीन, अपवित्र माना जाता है ।मैकालेकी निधर्मी शिक्षण पद्धतिने इस दैवी संस्कार कर्मका भी सत्यानाश कर दिया ! अब तो यज्ञोपवित धारण करना तक अनेक पुरुषोंको भार लगता है  एवं अनके युवा अपने यज्ञोपवीत संस्कारके पश्चात इसका परित्याग कर देते हैं, क्योंकि यज्ञोपवीतका महत्त्व उसे  शास्त्रीय पद्धतिसे नहीं बताया जाता है ! जिनका भी आध्यत्मिक स्तर ३५ % से अधिक हो, आजके कालमें वे सभी अपना याग्योपवीत संस्कार करवा सकते हैं, क्योंकि अब तो वर्ण संकर हो चुका है, शुद्ध वर्णके व्यक्तिका मिलना आजके कालमें बहुत कठिन है  ! किसी भी तीर्थक्षेत्रमें जाकर कोई  भी पुरुष शुभ तिथिमें यह मांगलिक कर्म करवा कर, उसका पालन कर एक सुसंस्कृत वैदिक आर्य एवं साधक बनने हेतु प्रयास कर सकते हैं ! यह मैं क्यों बता रही हूं ?, क्योंकि अब यह मात्र ब्राह्मणोंमें प्रचलित रह गया है, किन्तु कुछ सात्त्विक एवं साधक प्रवृत्तिके पुरुषोंके मनमें यह प्रश्न निर्माण हो सकता है कि क्या मैं भी इसे धारण करनेकी पात्रता रखता हूं ?, तो हां, यदि आप सात्त्विक प्रवृत्तिके हैं और आप यज्ञोपवीत धारण करनेके सर्व नियमोंका पालन करने हेतु भी आजीवन तत्पर हैं तो आप इस पवित्र सूत्रको इसके निमित्त  वैदिक कर्म करनेके पश्चात अवश्य धारण कर सकते हैं ! हम इस सम्बन्धमें भी एक सामूहिक शिविर आयोजित करनेका विचार कर रहे हैं, जैसे ही यह सम्भव होगा हम आपको उसकी सूचना अवश्य देंगे !

 यज्ञोपवीतके समय जो जनेऊ धारण किया जाता है वह छियानबे अंगुलके सूती धागासे बनाया जाता है । इस छियानबे अंगुल धागेका जनेऊ चौसठ कलाओं एवं बत्तीस विद्याओंमें मर्मज्ञ होनेका प्रतीक माना जाता है । विद्याओंमें चार वेद, छ: अंग, छ: दर्शन, तीन सूत्र ग्रन्थ और नौ अरण्यक आदि आते हैं, जबकि चौसठ कलाओंमें वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्यिक कला, दस्तकारी, भाषा, यन्त्र-निर्माण, सिलाई, कढाई, आभूषण निर्माण, कृषि, आदि आते हैं । इतना ही नहीं, जनेऊके तीन धागे मनुष्य जीवनके तीन कर्ज पितृऋण, देवऋण, और ऋषिऋणके साथ सत्त्व, रज और तमके प्रतीक माने जाते हैं; इसलिए मनुष्य जीवनके लिए यज्ञोपवीत संस्कारका विशेष महत्त्व दिया गया है और यज्ञोपवीत संस्कार कर्मके हो जानेपर, जनेऊ धारण करनेके पश्चात माना जाता है कि मनुष्य संस्कारित है और वह सम्पूर्ण जीवन अधर्म आचरणसे दूर रहेगा । यज्ञोपवीत मनुष्यको वैदिक, धार्मिक मर्यादाओंपर जीवन जीनेकी कला सिखाती है और चरित्रवान एवं संयमित बनाने हेतु प्रवृत्त करती है । जिस प्रकारसे जीवनमें गुरुका विशेष महत्त्व होता है उसीप्रकारसे यज्ञोपवीत संस्कारका महत्त्व होता है ।

जनेऊ संस्कारका समय : माघसे लेकर छ: मास उपनयन संस्कारके लिए उपयुक्त हैं । प्रथम, चौथी, सातवीं, आठवीं, नवीं, तेरहवीं, चौदहवीं, पूर्णमासी एवं अमावसकी तिथियां बहुधा छोड दी जाती हैं । सप्ताहमें बुध, बृहस्पति एवं शुक्र सर्वोत्तम दिन हैं, रविवार मध्यम तथा सोमवार बहुत कम योग्य है; किन्तु मंगल एवं शनिवार निषिद्ध माने जाते हैं । इसकी शुभ तिथि निकलवाने हेतु हम किसी पुरोहित, जिनके पास पंचांग हो या ज्योतिषीकी भी सहायता ले सकते हैं । मेरी तो विनती है कि प्रत्येक माता-पिता जो अपने सन्तानोंमें दिव्य गुणोंको डालना चाहते हैं उन्होंने अपने पुत्रोंकी आठसे बारह वर्षकी आयुके मध्य उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर्म अवश्य ही करवाना चाहिए, किन्तु उसके पश्चात वह उसे आजीवन उससे सम्बन्धित आचारधर्मका पालन करे, यह संस्कार भी डालना चाहिए ! उपासनाके आरम्भ होनेवाले वैदिक गुरुकुलमें प्रवेश पाने हेतु यह एक आवश्यक नियम होगा !

मुहूर्त : नक्षत्रोंमें हस्त, चित्रा, स्वाति, पुष्य, घनिष्ठा, अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, श्रवण एवं रेवती अच्छे माने जाते हैं । एक नियम यह है कि भरणी, कृत्तिका, मघा, विशाखा, ज्येष्ठा, शततारकाको छोडकर सभी अन्य नक्षत्र सबके लिए अच्छे हैं ।

पुनश्च: : पूर्वाषाढ, अश्विनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, ज्येष्ठा, पूर्वाफाल्गुनी, मृगशिरा, पुष्य, रेवती और तीनों उत्तरा नक्षत्र, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, दशमी, एकादशी तथा द्वादशी तिथियां, रवि, शुक्र, गुरु और सोमवार दिन, शुक्ल पक्ष, सिंह, धनु, वृष, कन्या और मिथुन राशियां उत्तरायणमें सूर्यके समयमें उपनयन संस्कार अर्थात यज्ञोपवीत या जनेऊ संस्कार शुभ होता है । (क्रमश: )



One response to “यज्ञोपवीत क्यों धारण करना चाहिए ? (भाग – ४)”

  1. Harshad Shantiniketan Dave says:

    Yagnopavitam Param Pavitratam
    Is Karya k liye naman

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