किसान आत्महत्या: कर्नाटक में हर दिन दो से चार किसान करते हैं आत्महत्या, संगठन ने कहा छह से सात


निरंजन कगेरे, बेंगलुरु
कर्नाटक में हर दिन दो से चार किसान आत्महत्या करते हैं। यह भयावह तथ्य खुद सरकार ने दिया है। अगर किसानों के संगठन द्वारा दिए गए आंकड़ों की मानें तो यह संख्या छह से सात हो जाती है। यह बताता है कि राज्य में आए रिकॉर्ड गर्मी और सूखे से किसान समुदाय पर बड़ी आपदा आ सकती है। साल 2016-17 के दौरान बीते फरवरी तक 848 किसान पहले ही आत्महत्या कर चुके हैं।
साल 2015-16 में बारिश की कमी की वजह से सदमे में रिकॉर्ड 1478 किसानों ने आत्महत्याएं की थीं। उन्हें अपने अनाज के बदले सही दाम नहीं मिले। राष्ट्रीय बैंकों व निजी साहूकारों के कर्ज में वे पूरी तरह डूब चुके थे। राज्य की सिद्धारमैया सरकार के पास गंभीर सूखे से निपटने की चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी है। हालांकि राज्य सरकार कृषि को फायदेमंद बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन कर्नाटक राज्य कृषि मूल्य आयोग ने संकेत दिए हैं कि यह लक्ष्य अभी काफी दूर है।
उत्तरी कर्नाटक के जिलों में पिछले साल सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्याएं कीं। कम मॉनसून और भूजल में आई कमी के चलते इस साल मलनाड के इलाकों में कई जलाशय अब तक सूखे हैं। किसान आत्महत्या में हावेरी जिला सबसे आगे है। यहां 86 किसानों ने आत्महत्या की। इसके बाद धारवाड़ जिले का नंबर आता है जहां 73 किसानों ने आत्महत्या की। इनके अलावा चिकमगलुरु में 70, मैसूर में 50 और मांड्या में 51 किसानों ने आत्महत्या की। बता दें कि मैसूर और मांड्या दोनों ही कृषि के लिए कावेरी नदी पर निर्भर हैं।कर्नाटक में पिछले चार साल से लगातार सूखे के चलते किसान बेहाल हैं। खराब मॉनूसन की पूर्ति के लिए भूजल के लापरवाह उपयोग से अब हालात और खराब हो गए हैं। राज्य के बजट में भी किसानों को मिलने वाले ऋण में छूट मिलने का कोई जिक्र नहीं था जिससे उन्हें काफी निराशा हुई है। गन्ना उत्पादक संघ के अध्यक्ष कुरुबुरु शांताकुमार कहते हैं, ‘सरकार को आत्महत्याएं रोकने के लिए योजना बनानी चाहिए थी। वह पिछले साल की गलतियों से सीखने में नाकाम रही, नतीजतन इस साल भी आत्महत्याएं हो रही हैं। हमारे अनुमान के मुताबिक, पिछले डेढ़ साल में पूरे कर्नाटक में करीब तीन हजार किसानों ने आत्महत्या करने की कोशिशें की हैं। हमारी मांग केवल यह है कि सरकार कर्ज वसूलना बंद करे और कर्ज माफ करे।’
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने साफ किया है कि केंद्र सरकार को कर्ज माफ कर देना चाहिए, लेकिन किसान इसे लेकर अलग बात कहते हैं। शांताकुमार कहते हैं, ‘अगर वह (सीएम) दूसरों को दे सकते हैं तो हमें क्यों नहीं? मुख्यमंत्री कहते हैं कि वह कर्ज माफ नहीं कर सकते, लेकिन राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतन संशोधन (बढ़ोतरी) के लिए कमिशन बनाने के लिए उनके पास पैसे हैं। यह बात कई बार साबित हो चुकी है कि किसान और कृषि इस सरकार की प्राथमिकता में नहीं हैं।’
कर्नाटक कृषि मूल्य आयोग किसान आत्महत्याओं के लिए लगातार नोटबंदी और अवैज्ञानिक खेती को जिम्मेदार बताता रहा है। आयोग के अध्यक्ष टीएन प्रकाश कमारडी कहते है, ‘नोटबंदी की वजह से बाजार से पैसा गायब हो गया। इसकी वजह से उत्पादों की कोई बिक्री नहीं हुई। जब बाजार में बिक्री ही नहीं होगी तो किसानों को फायदा कैसे सुनिश्चित हो सकता है?’ उन्होंने कहा, ‘केंद्र को इस मुद्दे पर और सक्रिय रहना चाहिए था।’कमारडी ने कहा, ‘कुछ इलाकों में किसानों ने केवल एक फसल पैदा की जिससे उत्पादन बढ़ा और दाम कम हुए। हमें खेती करने के लिए सही योजना की जरूरत है और किसानों को अपनी फसल के सही दाम पाने के लिए उन नियमों का पालन करना होगा।’ दिसंबर 2016 तक बाजार के उतार-चढ़ाव के आधार पर कर्नाटक कृषि मूल्य आयोग ने प्रति एकड़ के हिसाब से पूरे कर्नाटक में हुई खेती का लाभ-हानि का अनुमान लगाया है। रिपोर्ट के मुताबिक, कई मुख्य फसलों की खेती में किसानों को नुकसान हुआ है। हालांकि कुछ फसलों में फायदा हुआ लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। धान, रागी, बाजरा, उड़द की दाल, नारियल आदि की खेती में केवल नुकसान हुआ।

सौजन्यसे : http://navbharattimes.indiatimes.com



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