क्या गुरु परिवर्तित कर सकते हैं ?


अनेक बार कुछ गुरु-भक्त अपने गुरुसे सन्तुष्ट नहीं होते; क्योंकि वे न तो उनके शंकाओंका समाधान कर पाते हैं और न ही उन्हें आनन्दकी अनुभूति दे पाते हैं, ऐसेमें उनके मनमें द्वन्द्व एवं भय रहता है,उन्हें कैसे छोडूं ? ऐसे सभी साधकोंके लिए शास्त्र कहता है :-
अनभिज्ञं गुरुं प्राप्य संश यच्छेदकारकम् ।
गुरुरन्य तरंगत्वा नैतदोषेण लिप्यते ॥
मधुलब्धो यथा भृंग: पुष्पात् पुष्पांतरं व्रजेत् ।
ज्ञानलुब्धस्तथा शिष्यो गुरोर्गुर्वन्तरं व्रजेत् ॥
अर्थात यदि गुरु आपकी शंकाओंका समाधान नहीं कर सकते और ऐसी स्थितिमें यदि शिष्य किसी और गुरुके पास जाता है तो उसे कोई पाप नहीं लगता; क्योंकि जैसे मधुमक्खी तबतक एक पुष्पसे दूसरे पुष्पपर उडती रहती है, जबतक उसे मधु न मिल जाए । वैसे ही आत्मज्ञान पानेको इच्छुक शिष्य एक गुरुसे दूसरे गुरुके पास अवश्य जा सकता है ।



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