महान गणितज्ञ पण्डित रामानुजको स्वप्नमें कुलदेवी देती थीं उनकी समस्याका समाधान !


दिसम्बर २२, २०१८

गणितके वे प्रश्न, जिनका समाधान नहीं निकाला जा सका हो, उन्हें सुलझाते हुए रामानुजन भूख-प्यास सब भूल जाते । इन्हीं प्रश्नोंका उत्तर खोजते हुए उन्हें नींद आ जाती । आधी रातमें एकाएक उठकर वे प्रश्नको ऐसे हल करते मानो कोई कठिनाई रही ही न हो ! उनका कहना था कि रात्रिमें उनकी कुलदेवी उन्हें स्वप्नमें दर्शन देकर प्रश्नोंके उत्तर सुझाती हैं । गणितके एक प्रश्नको १००से भी अधिक प्रकारसे समाधान करने वाले भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजनका २२ दिसम्बरको जन्मदिवस है । इस गणित कुशाग्र बुद्धि विशेषज्ञका जन्मदिवस राष्‍ट्रीय गण‍ित द‍िवसके रूपमें मनाया जाता है ।


रामानुजनका जन्म कोयम्बटूरके ईरोड गांवमें २२ दिसम्बर १८८७ को हुआ । बालक रामानुजनके परिवारकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी । पिता वस्त्रोंकी दुकानपर काम करते तो भगवानपर आस्था रखने वाली मां मन्दिरमें भजन गाया करती, मन्दिरमें मिलने वाले प्रसादसे घरपर एक समयका भोजन मिलता तो दूसरे समयके लिए पिताकी आयपर परिवार निर्भर था । कई-कई बार दो समयके भोजनके लिए रामानुजनके परिवारको कई दिनों तक प्रतीक्षा करनी होती ।

रामानुजन आरम्भसे ही गणितमें अपनी असाधारण प्रतिभा दिखाने लगे । निर्धन माता-पिताके पास चूंकि अधिक ‘नोटबुक’ क्रय करनेके पैसे नहीं होते थे तो रामानुजन पहले ‘स्लेट’में गणितके प्रश्न हल करते और फिर सीधे अन्तिम उत्तर ही ‘नोटबुक’पर उतारते ताकि अधिक दिनों तक चले । अपनी कक्षाकी पुस्तकें कुछ ही दिनोंमें चट कर जानेके पश्चात वे बडी कक्षाके बच्चोंके प्रश्न भी हल कर देते ! वरिष्ठ छात्र भी गणितमें सहायताके लिए रामानुजनका मुंह देखते और रामानुजनको भी इसी बहाने अधिक पढनेका अवसर मिल जाता था ।

छोटे से बच्चेकी इसी प्रतिभाको देखते हुए उनके एक अंग्रेज शिक्षकने एक बार टिप्पणी की कि मेरे पास अब कोई ऐसा ज्ञान शेष नहीं, जो मैं इस बच्चेको दे सकूं । यदि मुझे १०० मेंसे १०१ या १००० देनेकी छूट हो तो मैं रामानुजनको उतने ही अंक देना चाहूंगा ।

 

बन्दरगाहपर (पोर्टपर) लिपिकके (क्लर्कके) कामके पश्चात शेष समयमें वे गणितके कठिनसे कठिन प्रमेयका (थ्योरम) समाधान करते । साथमें वे एक और काम करते थें, ब्रिटिश गण‍ितज्ञ जीएच हार्डीको पत्र लिखना । उस समय हार्डीका नाम समूचे विश्वमें गणितके प्रतिभाशाली व्यक्तिके रूपमें हो चुका था और रामानुजन उन्हींके साथ रहते हुए गणितपर काम करना चाहते थे । इंग्लैडमें बैठे हार्डीने पहले तो एक भारतीय क्लर्कके पत्रोंको उपहासपूर्ण लिया, परन्तु तदोपरान्त उन्हें अन्देशा हो गया कि ये किसी साधारण ज्ञान रखने वालेके पत्र नहीं । उन्होंने रामानुजनको कैंब्रिज विश्वविद्यालयमें छात्रवृत्ति (स्कॉलरशिप) दिलवाई और उन्हें सात समुंदर पार बुलवा लिया ।

इंग्लैण्डमें रामानुजनका एक नूतन जीवन आरम्भ हुआ, जिसमें उन्हें कोई चिन्ता किए बिना दिन-रात गणित पढने-करनेकी छूट थी । रामानुजनने यहां विश्वविद्यालयके पुस्तकालयमें पढते हुए २० से भी अधिक शोध पत्र प्रकाशित करवाए, यहींपर उन्हें विज्ञानमें स्नातककी उपाधि मिली और साथमें मिली ‘रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन’की सदस्यता, जो उस समय भारतीयोंके लिए बहुत ही कठिनाईसे मिलने वाला सम्मान मानी जाती थी । सबसे अल्प आयुमें सदस्यता पाने वाले रामानुजन प्रथम भारतीय थे । इसके पश्चात उन्हें ट्रिनिटी महाविद्यालयका साहचर्य (फैलोशिप) भी मिला ।

एक ओर रामानुजन निरन्तर उपलब्धियां पा रहे थे तो दूसरी ओर उनका स्वास्थ्य निरन्तर गिर रहा था । इंग्लैंडका शीतल वातावरण उष्ण स्थानके रामानुजनको रास नहीं आ रहा था । शिक्षाके समय ही शीतप्रकोप और अल्प भोजनके कारण उन्हें टीबी हो गई । निरन्तर रोगके कारण उन्हें देश लौटना पडा और २६ अप्रैल १९२० को रामानुजनने विश्वको विदा कर दिया ।

३२ वर्षके जीवनमें ही रामानुजनने विश्वको ऐसे सूत्र दिए हैं, जिनकी सहायतासे निरन्तर वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं । ट्रिनिटी महाविद्यालयके पुस्तकालयमें उनकी एक प्राचीन ‘नोटबुक’ आज भी विश्वके गणितज्ञोंके लिए रहस्य है, जिसके ढेरों प्रमेय अब भी हल नहीं हो सके हैं ।

आध्यात्म और ईश्वरपर विश्वास रखने वाले रामानुजन गणितके किसी कठिन प्रश्नको हल करनेपर कहते थे कि रातमें कुलदेवी उनके स्वप्नमें आती हैं और उत्तर बता जाती हैं । ये उपहास नहीं था । एक साक्षात्कारमें उन्होंने कहा था,  “मेरे लिए उस गणितका कोई अर्थ नहीं, जो मुझे आध्यात्मिक राहत न देता हो ।”

शिक्षाके लिए पुस्तकोंकी कमीसे जूझते और भोजनके लिए मन्दिरके प्रसादपर निर्भर रहने वाले रामानुजनका घर आज संग्रहालय बन चुका है, जो समूचे विश्वके गणितज्ञोंका तीर्थ है । २२ दिसम्बर २०१२ को तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ मनमोहन सिंहके रामानुजनके जन्मदिनको राष्ट्रीय गणित दिवसके रूपमें मनानेकी घोषणा की, जो गणितमें उनके योगदानको राष्ट्रीय स्वीकृति देनाभर था ।

 

“रामानुजन गणितके इतिहासका वह मोती थे, जो आज भी उसी शक्तिसे चमक रहा है । उनकी भीतरकी शक्तिका स्रोत नामगिरी देवी (उनकी कुलदेवी) थीं । सनातन धर्मका यही रहस्य समूचे विश्वको अपनी ओर आकर्षित करता है । अन्य पन्थ ईश्वरका कोई आकार नहीं बताते, कोई कहते हैं कि कुछ है ही नहीं, वहीं सनातन धर्मने सगुण ईश्वरको न केवल प्रतिपादित किया, वरन् इसकी सत्ताको अनेकानेक सन्तोंने सिद्ध भी किया और इसीसे ही सनातन धर्मकी विशालताका बोध होता है ।”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत :  न्यूज १८



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