सिनेमा यकीन दिलाने की कला होती है। दृश्यों और पार्श्व संगीत के मेल से रचित फ़िल्म से आप किसी भी नैतिक-अनैतिक तर्क को उचित ठहरा सकते हैं। यदि आप इतिहास की ऐसी-तैसी करने निकले हैं तो बचाने के लिए देश का न्यायालय बैठा ही है। यदि आपने हिन्दू धर्म या उनके किसी त्यौहार पर फिल्म बनाई है तो निश्चित मानिये कि वह प्रदर्शित होकर रहती है। सिनेमा के जरिये विचारधारा बदलने की लगातार कोशिशें हो रही हैं और ऐसा क्यों होता है कि ऐसी कोशिशों के पीछे ‘खान खेमा’ ही खड़ा दिखाई देता है।
‘ट्यूबलाइट’ जैसी फ़िल्म के जरिये सलमान खान ‘चीन से मित्रता’ का संदेश लेकर आए सलमान खान की अगली फिल्म ‘लवरात्रि’ की हीरोइन मिल गई है। गुजरात की पृष्ठभूमि में बन रही इस प्रेम कहानी में हीरो आयुष शर्मा हैं जो उनके परिवार के हैं और हीरोइन है इराकी वरीना खान।
लवरात्रि के कुछ फोटो नेट पर वायरल हुए थे, जिनमे आयुष को गरबा प्रेक्टिस करते हुए देखा गया था। गुजरात का बैकग्राउंड है, गरबा है, लड़का है, लड़की है और प्रेम कहानी है। ठीक है आपको स्वतंत्रता है, आप ऐसी प्रेमकथा बना सकते हो। ये आपका बुनियादी हक है। हालांकि आपने ये नहीं बताया कि नवरात्रि की तर्ज पर ही आपने फिल्म का शीर्षक ‘लवरात्रि’ क्यों रखा है। क्या आप भी ब्रिटेन में रहने वाली उस लेखिका की तरह कुटिलता कर रहे हैं जो झाँसी की रानी और 1857 के स्वाधीनता संग्राम के विषय का भरपूर उपयोग करते हुए उसी रानी की काल्पनिक प्रेम कथा लिख देती है और बेशर्मी से कहती है कि ‘मेरी किताब काल्पनिक है’।
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