शंका समाधान


प्रश्न : आपने एक लेखमें लिखा है कि पूजाघरकी रचना करते समय देवियोंको गणेशजीके बाईं ओर रखना चाहिए, जबकि दीपावलीमें जब हम गणेश और लक्ष्मीकी मूर्ति लाते हैं तो लक्ष्मीजीको गणेशजीकी दाहिने ओर रखते हैं । आपके लेख पढनेके पश्चात मैं भ्रमित हो गया हूं, कृपया मेरी शंकाका निराकरण करें !  – रोहन बजाज, इंदौर

उत्तर : पूजाघरकी रचना करते समय देवियोंको गणेशजीके बाईं हाथकी ओर रखना चाहिए और देवताओंको दाहिने हाथकी ओर रखना चाहिए । हमारे श्रीगुरुने बताया हुआ इसका आधारभूतशास्त्र इस प्रकार है – देवताओंसे आनन्द और शान्तिके स्पन्दन प्रक्षेपित होते हैं और देवियोंसे शक्तिके स्पन्दन प्रक्षेपित होते हैं । हमारी बाईं ओर चन्द्रनाडी है और दाहिने ओर सूर्यनाडी है । जब पूजक पूजा करने बैठता है तो चन्द्रनाडीसे आनन्द और शान्तिके स्पन्दन और देवताओंसे भी उसी प्रकारके स्पन्दनके प्रक्षेपण होते हैं, उसी प्रकार सूर्यनाडी और देवियोंसे शक्तिके स्पन्दनमें सामंजस्य स्थापित हो जाता है; फलस्वरूप उसकी सुषुम्नानाडीमें स्थित कुण्डलिनी पूजा करते समय जाग्रत होती है; अतः इस प्रकारके पूजाघरकी रचनासे हमारी आध्यात्मिक प्रगति होती है और पूजा करते समय मन भी एकाग्र रहता है ।

दीपावलीके समय हम शक्ति, ऐश्वर्य, धन, वैभव इत्यादिके लिए लक्ष्मी माताकी आराधना करते हैं, ऐसेमें यदि लक्ष्मी माताको गणेशजीके दाहिने हाथकी ओर रखते हैं तो शक्ति तत्त्व अधिक क्रियाशील होनेके कारण पूजकपर उसकी कार्यसिद्धि हेतु आवश्यक शक्तिपात होता है ।

सामान्यतः यजमान पति-पत्नी जब कोई कर्मकाण्ड करने बैठते हैं, तब पत्नी पतिके बाईं ओर बैठती है; परन्तु जब भी किसी भी पूजा या कर्मकाण्ड करते समय भी पूजकको शक्तिकी आवश्यकता होती है तो स्त्री साधिकाको पुरुषके दाहिने हाथकी ओर बैठाया जाता है । आज भी यदि आप कोई विशेष कार्यसिद्धि हेतु कोई विशेष कर्मकाण्ड अन्तर्गत यज्ञ करवाते हैं तो पुरोहित यजमानकी पत्नीको दाहिने हाथकी ओर बैठाता है ।

दीपावलीके अगले दिवस पुनः गणेशजीके बाईं हाथकी ओर लक्ष्मीजीको रख देना चाहिए और क्रय करते समय यह ध्यान रखें कि गणेश और लक्ष्मीका विग्रह जुडा हुआ न हो । आजके मूर्तिकार और चित्रकार योग्य साधना करते नहीं है, ऐसेमें उन्हें इस प्रकारकी सूक्ष्म जानकारी कई बार नहीं होती है ।

 



One response to “शंका समाधान”

  1. Nice information.thanx.

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