मार्च २१, २०१९
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीके वंशवादपर किए एक ट्वीटके पश्चात इस प्रकरणपर प्रखर बहस आरम्भ हो गई है । समाचार पत्र ‘भास्कर’ने इसकी जांच की तो यह बात पूर्णतः स्पष्ट उभरकर सामने आई कि देशकी राजनीतिमें राजवंशी (कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयके एक शोधमें उन नेताओंको ‘राजवंशी’ नेता कहा गहा है, जिनके परिवारसे कोई न कोई सदस्य चुनावी राजनीतिमेें सक्रिय रहा हो) ही प्रभावी हैं । यदि हम २१वीं शताब्दीमें हुए तीन लोकसभा चुनावों (२००४, २००९ और २०१४) की बात करें, तो ये तथ्य उभरकर सामने आता है कि इस शताब्दीमेें एक चौथाई सांसद ऐसे विजयी हुए हैं, जिनका सम्बन्ध किसी न किसी राजनीतिक परिवारसे रहा है अर्थात २१वीं शताब्दीमें लगभग २५% सांसदोंकी पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिसे जुडी रही है ।
गत तीन चुनावोंको देखें, तो १६११ सांसदोंमें ३९० राजवंशी चुने गए । इतना ही नहीं, सभी पार्टियोंने सीट बढानेके लिए इन राजवंशियोंको (डायनेस्टी) टिकट दिए । २१वीं शताब्दीमें एक भी राजवंशी सांसद निर्दलीयके रूपमें नहीं विजयी हो पाया । अचम्भित करनेवाली बात यह है कि स्वतन्त्रताके पूर्व जो शाही परिवार अर्थात राजा-महाराजा, जागीरदार और जमींदार आदि जाने जाते थे, उनमेंसे केवल ३% सांसद इनसे सम्बन्ध रखते हैं । कुल राजवंशी सांसदोंमें इनकी संख्या केवल १०% ही है ।
इस प्रकरणमें विशेषज्ञोंकी मत भिन्न-भिन्न है । चुनावी विश्लेषण करनेवाली संस्था ‘सीएसडीएस’के निदेशक संजय सिंह कहते हैं कि कोई सांसद भले ही राजनीतिक राजवंशी परिवारसे हो; परन्तु उसे चुनती तो जनता ही है । केवल राजवंशी होनेके कारण कोई भी सांसद बार-बार चुनाव नहीं विजयी नहीं हो सकता है । उसे कार्य करना ही पडेगा ।
न्यूयाॅर्क विश्वविद्यालयमें राजनीति विभागकी प्रो. कंचन चंद्राने २१वीं शताब्दीमें हुए चुनावोंपर शोध किया और ज्ञात करनेका प्रयास किया कि राजनैतिक पृष्ठभूमिसे आनेवाले कितने सांसद लोकसभामें बैठ रहे हैं । चंद्राके अनुसार, परिवारवाद राजनीतिकी सत्यता बन चुका है, जो लोकतन्त्रको हिंसक बना रही है । इसमें पंचायतसे लेकर मुख्यमन्त्री, प्रधानमन्त्रीकी कुर्सीतक विद्यमान है ।
गत तीन चुनावोंमें ३९१ सांसद राजवंशी
वर्ष | राजवंशी सांसद |
कुल | प्रतिशत | |
२००४ | १०९ | २० |
२००९ | १६३ | ३० |
२०१४ | ११९ | २२ |
राजवंशियोंको टिकट देनेमें कांग्रेस आगे
वर्ष | भाजपा | कांग्रेस |
२००४ | १४% | २८% |
२००९ | १९% | ४०% |
२०१४ | १५% | ४८% |
राजवंशी सांसद उत्तरमें घटे, दक्षिणमें बढे
क्षेत्र | २००९ | २०१४ |
पूर्व | — | २४% |
पश्चिम | १८% | १८% |
उत्तर | ४१% | २२% |
दक्षिण | २४% | २९% |
“आजकी राजनीतिकी विकट परिस्थिति इसीलिए ही है कि सोनेके फर्शपर पग रखनेवाले नेता, जिन्होंने सम्भवतः कभी निर्धन या किसान आदि देखे ही नहीं, वे कुर्सीपर बैठा दिए जाते हैं ! अब जिसने समस्याके मूलको ही न जाना, जो दुःख ऐसा शब्द ही नहीं जानते, वे ९५% दुःखी जनताकी समस्या कैसे समझेंगें ? पिता यदि नेता होता है तो वह अपने पुत्रको, तदोपरान्त अपने समूचे परिवारको राजनीतिमें लाकर बैठा देता है और जिसप्रकारसे चुनाव जीतकर जनताका शोषण करते हैं । वंशवादमें सबसे अधिक कांग्रेस है; क्योंकि यहां राजनीतिका अर्थ केवल और केवल गांधी परिवार है । अन्य जो नेता रह जाते हैं, वे दल परिवर्तित करते रहते हैं ! इस स्थितिको परिवर्तित करनेके लिए हिन्दू राष्ट्रकी आवश्यकता है, जहां परिवारके आधारपर नहीं, वरन योग्यता व राष्ट्रप्रेमकी भावनाके आधारपर राज्याधिकारी चुने जाएंगें ! ”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : भास्कर
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