आकाश तत्त्वद्वारा आध्यात्मिक उपाय


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प्रकृतिके पंच तत्त्वोंमें (पृथ्वी, आप अर्थात् जल, तेज, वायु एवं आकशमें) हमपर आध्यात्मिक उपाय करनेकी प्रचण्ड क्षमता होती है । आज हम आकाश तत्त्वके माध्यमसे आध्यात्मिक उपायके विषयमें कैसे कर सकते हैं उस विषयमें जानकारी प्राप्त करेंगे ।

जिस प्रकार पृथ्वी, जल, सूर्य एवं वायुमें दैवी तत्त्व होता है और उनमें हमपर आध्यात्मिक उपाय करनेकी क्षमता होती है, उसी प्रकार नीले आकाशमें भी हमारे ऊपर आध्यात्मिक उपाय (spiritual healing ) करनेकी नैसर्गिक क्षमता होती है । यदि आकाश नीला हो और उसमें काले बादल न हों एवं सूर्यका प्रकाश अधिक तीक्ष्ण न हो तो आंगनमें या छतपर आकाशके नीचे, आसन्दी(कुर्सी), चटाई या आसन लेकर बीस मिनटसे आधे घण्टे नित्य बैठें, यह आध्यात्मिक उपाय आप किसी खुले मैदानमें, समुद्रके किनारे भी कर सकते हैं अर्थात् जहां भी आपको खुला स्थान मिले जो स्वच्छ हो और जहांपर आप शान्तिसे बैठ सकते हैं, वहां यह आध्यात्मिक उपाय कर सकते हैं । यदि आप महानगरमें रहते हैं और आप खुले आकाशके नीचे नहीं बैठ सकते तो अपने बालकनीमें आसन्दी(कुर्सी) लेकर ऐसे बैठें, जिससे आपको नीला आकाश सीधे दिखाई दे, मात्र ध्यान रखें ! आपके और आकाशके मध्य कोई वृक्ष या भवन इत्यादि न आए ! यदि बालकनी न हो तो आप अपनी खिडकीसे भी सीधे आकाशको देख सकते हैं और यह आध्यात्मिक उपाय कर सकते हैं ! आकाशके नीचे बैठनेका सबसे अच्छा समय सवेरेमें पूर्ण सूर्योदय होनेके पश्चात् है या संध्या समय सूर्यास्तसे पूर्वका है; किन्तु दोनों ही समय सूर्यका प्रकाश होना चाहिए अर्थात् इस उपाय हेतु दो बातोंका ध्यान रखें एक तो आकाशमें काले बादल न हो और दूसरा यह कि अन्धेरा न हो, तभी यह उपाय किया जा सकता है ! आकाशके नीच बैठनेके पश्चात् इस प्रकार प्रार्थना करें “हे आकाश तत्त्व, आपके निर्गुण तत्त्वके माध्यमसे मुझपर आध्यात्मिक उपाय हो एवं मेरे शरीरके अन्दर अनिष्ट शक्तिद्वारा निर्मित काली शक्ति तथा मन एवं बुद्धिपर छाया काला आवरण नष्ट हो । मेरा शरीर, मन और बुद्धि साधना हेतु स्वस्थ एवं पोषक बनें, ऐसी आप कृपा करें !” इस छोटेसे सरल नि:शुल्क नैसर्गिक उपायसे अनिष्ट शक्तियोंके कारण निर्माण होनेवाले अनेक प्रकारके शारीरिक कष्ट जैसे शरीरमें सतत् वेदना होना, अत्यधिक नींद एवं आलस्य रहना, शरीरमें सूजन रहना, नींद न आना, मनमें नकारात्मक विचार आना, अवसाद होना, अत्यधिक क्रोध आना, स्मरण शक्ति न्यून होना, साधनाके प्रति विकल्प निर्माण होना जैसे शारीरिक और मानसिक कष्ट न्यून हो जाते हैं और विशेषकर यदि औषधियोंसे आपके कष्ट न्यून न हो रहे हो तो आप समझ सकते हैं कि कष्टका स्वरुप आध्यात्मिक है, ऐसेमें इस प्रकारसे कष्टको न्यून करने या समाप्त करनेका तो आकाश तत्त्वके माध्यमसे आध्यात्मिक उपाय करना, एक अचूक आध्यात्मिक उपचार पद्धति है । यदि आपको कोई गलेसे लेकर पेट तककी कोई समस्या हो तो और औषधियोंका प्रभाव नहीं पड रहा हो तो आकाशकी और देखते समय अपने मुखको खुला रखें एवं यह भाव रखें कि मेरे शरीरमें जो भी काली शक्ति है, वह आकाश तत्त्व सोख रहा है और मुझपर आध्यात्मिक उपाय हो रहा है, ऐसा करनेपर आपको कुछ क्षणके लिए शरीरेके जिस अंगमें कष्ट है, उसमें आकाशकी ओरसे खिंचाव अनुभव होगा; किन्तु इससे यह समझना चाहिए कि आपपर आध्यामिक उपाय हो रहा है; अतः आर्ततासे प्रार्थना और कृतज्ञता व्यक्त करते हुए नामजप करते रहे, इस उपायको करते समय अपने गुरुमंत्रका या इष्टदेवताका या श्रीगुरुदेवदत्तका जप करें, यदि यह उपायको करनेपर कष्टकी तीव्रता बढ जाए तो ॐ श्री आकाश देवाय नमः, यह जप करें  ! यह उपाय लगातार कुछ मास तक बीस मिनिटसे आधे घण्टे तक, तब तक करते रहे जब तक आपके आध्यात्मिक कष्टोंका तीव्रता न्यून न हो जाए ।
यदि आप प्रातःकाल किसी खुले स्थानपर भ्रमण कर रहे हैं या प्राणायाम कर रहे हों तब भी यह उपाय कर सकते हैं, इसके लिए भ्रमण (सैर) या प्राणायामके साथ-साथ बताई गई प्रार्थना प्रत्येक पांच मिनिट पश्चात करें । इस आध्यात्मिक उपायके सत्रको समाप्त करनेपर आकाश तत्त्वसे अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना न भूलें । यदि मानसिक कष्टका प्रमाण अधिक हो तो आकाशके नीच बैठकर आज्ञा चक्रपर न्यासकी मुद्रा करें, न्यासकी मुद्रा हेतु अपनी पांचों अंगुलियोंको जोडें एवं भूमध्य अर्थात् दोनों भ्रूमध्यपर रखें । साथ ही यदि आपके शरीरमें अत्यधिक वायुके कारण शरीरमें वेदना होती हो या पाचन शक्तिसे सम्बन्धित कष्ट हो तो इस उपायको करते समय अपनी अंगुलियोंसे वायु मुद्रा बनाकर बैठें । इस हेतु अपने हाथकी तर्जनी अंगुलीके अग्र भागको मोडकर, अंगूठेकी जडमें लगानेसे वायु मुद्रा बन जाती है । हाथकी शेष सारी अंगुलियोंको सीधी रखनेका प्रयास करें । एक और बात ध्यान रखें कि यदि आप नेत्र बन्द कर सो जाते हैं तो यह उपाय उतना लाभकारी नहीं होगा  ।
यह प्रयोग अपने वास्तुके सभी कक्षों हेतु भी कर सकते हैं ! प्रतिदिन सवेरे अपने वास्तुके द्वार एवं खिडकियां खोलनेके पश्चात् आकाश तत्त्वसे इस प्रकार प्रार्थाना करें, “हे आकाश तत्त्व, इस कक्षमें जो भी अनिष्ट शक्तिद्वारा काला आवरण निर्माण किया गया हो वह आपके तत्त्वद्वारा शोषित हो एवं हमारा यह कक्ष शुद्ध, पवित्र एवं साधना हेतु पोषक बने, ऐसा आपसे प्रार्थना है !” एवं जब आप द्वार बन्द कर रहे हों तो पुनः कृतज्ञता व्यक्त करें !
आकाश तत्त्व, सभी पञ्च महाभूतोंमें सूक्ष्मतम होनेके कारण, यह तत्त्व शून्य एवं निर्गुण है; अतः  हमारे सभी सूक्ष्म देहोंपर सूक्ष्म अनिष्ट शक्तद्वारा निर्माण किए गए सूक्ष्म काले आवरणको सोखनेकी नैसर्गिक क्षमता रखता है । – तनुजा ठाकुर



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