‘उपासना’पर गुरु-परम्पराकी कृपा कार्यरत


गुरुकी कृपा किसप्रकार कार्य करती है एवं गुरु परम्पराकी कृपा किसप्रकार उपासनाके कार्य निमित्त कार्यरत है, इसका उदाहरण देती हूं । इस बार १६ दिसम्बरको राष्ट्र आराधना मंचके प्रथम कार्यक्रम अन्तर्गत धर्मसभा हुई और इसके माध्यमसे इस नूतन न्यासकी स्थापना हो गई । मन्दारके पवित्र क्षेत्रके सुप्रसिद्ध मधुसूदन देवालयके (मन्दिरके) निकट ही यह कार्यक्रम जैसे स्वनियोजित था और वह साधकोंके अल्प प्रयाससे त्वरित हो गया; किन्तु मनमें था कि पौष मास अशुद्ध होता है ऐसेमें यह कार्य उस मासके आरम्भ करना योग्य था या नहीं; किन्तु हमारे पास कोई पर्याय नहीं था; क्योंकि हम कुछ साधक कुछ दिवसोंके लिए झारखण्ड गए थे और उसी कालमें तीन धर्म सभाएं करनी थी । १६ दिसम्बर २०१६ के दिवस जब कार्यक्रमका समापन हुआ तब भी मनमें यह विचार कहीं न कहीं सूक्ष्म रूपसे विद्यमान था । तभी उस कार्यक्रम हेतु उपस्थित मधुसूदन देवालयके (मन्दिरके) एक वृद्ध एवं सात्त्विक पण्डेने मुझे मधुसूदन भगवानका प्रसाद देते हुए कहा कि मैं आपके लिए यह मधुसूदन भगवानका प्रसाद लेकर आया हूं, और उसे देते हुए कहा, “आजका दिवस अत्यन्त शुभ है और आपके कार्यको अत्यधिक प्रसिद्धि मिलेगी । आज संकष्टी चतुर्थी है और आजसे खरमास आरम्भ हो रहा है ।” मैंने अगले दिवस उनके बताए अनुसार जब उनके कथन अनुसार सब जानने हेतु सनातन पंचांग अपने चलभाषपर खोला तो ज्ञात हुआ कि उस दिवस भूरानन्द बाबाका निर्वाण दिवस है, वे परम पूज्य भक्तराज महाराजके (हमारे गुरुके गुरु) गुरुबन्धु थे । यह देखकर मुझे अत्यधिक आनन्द हुआ । हमारा प्रथम न्यास, उपासना हिन्दू धर्मोत्थान संस्थान परम पूज्य अनन्तानन्द साईशजी महाराज, जो हमारे पर बाबा गुरु हुए उनकी पुण्यतिथिपर स्थापित किया गया था  और वैदिक उपासना पीठकी स्थापना भी हमने वसन्त पंचमीके दिवस अनायास ही की थी और वह दिवस परम पूज्य भक्तराज महाराजका प्रकट दिवस है यह मुझे कुछ दिवस पश्चात् ज्ञात हुआ और अब तीसरे न्यासकी स्थापना भी इतने शुभ दिवस हुई है । सन्तोंकी पुण्य तिथिमें ब्रह्माण्डमें उनकी शक्ति कार्यरत रहती है एवं इससे धर्मकार्यको गति मिलती है । इसप्रकार यह ज्ञात हुआ कि मैं मात्र गुरु तत्त्वकी एक कठपुतली हूं और वे मुझसे अपनी इच्छा अनुसार कार्य करवा रहे हैं; अतः उसकी तिथि भी वे स्वयं निर्धारित कर रहे हैं । इस गुरुकृपा हेतु मैं गुरुतत्त्व एवं गुरुपरम्पराके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करती हूं! – तनुजा ठाकुर

 



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