१९ फरवरी २०१५ को मैं आश्रमके एक कक्षमें जिसमें पुरुष साधक रहते हैं, वहां किसी व्यक्तिसे भ्रमणध्वनिसे बात कर रही थी कि अनायास वहींपर पटनासे आए एक साधकद्वारा रखे गए मेरे एक छायाचित्रपर मेरा कुछ क्षणोंके लिए ध्यान गया, मैं उस व्यक्तिसे बात करनेमें व्यस्त थी; परन्तु तब भी मुझे उस छायाचित्रके स्पंदन कुछ भिन्न प्रतीत हुए । उस समय मैंने उतना ध्यान नहीं दिया और दस मिनिट पश्चात् जब मेरी वार्ता समाप्त हो गई तो मैं उसे ध्यानसे देखने लगी और पाया कि वह छायाचित्र भिन्न स्थानोंपर पाटल वर्णी (गुलाबी) हो गया है; मैंने परम पूज्य गुरुदेवके कुर्तेका ‘गुलाबी’ होना और उसका कारण तो पढा था; परन्तु यह मेरे छायाचित्रके साथ होगा, यह कभी नहीं सोचा था । मेरे पास उस छायाचित्रकी मूल प्रति संगणक (कंप्यूटर) में थी अतः उसे निकालकर तुलना कर देखा तो पाया कि मूल छायाचित्रमें कहीं भी ‘गुलाबी’ रंग नहीं है ।
आश्चर्य यह है कि ‘गुलाबी’ रंग प्रीतिका द्योतक होता है; मैं तो सभी साधकोंको उनकी चूकोंपर कई बार डांटती भी हूं, यहांतक कि देश-विदेश जहां भी गई हूं और प्रवचन लेते समय भी जब भी मुझे आयोजकोंकी भी कोई चूक प्रवचनके मध्य ध्यानमें आती है तो उसे भी सबके समक्ष बता देती हूं । इतना कडक वर्तन करनेपर भी मेरे छायाचित्रका ‘गुलाबी’ होना सभीके लिए आश्चर्यका ही विषय होगा !! यह छायाचित्र उस साधकने पता नहीं कब इन्टरनेटसे लेकर उसका छायाचित्र बनाकर अपने कक्षमें लगा लिया था । यह छायाचित्र २७ फरवरी २०११ को दिल्लीमें लिया गया था । – तनुजा ठाकुर