मोबाइल बना रहा है बच्चों को मानसिक रोगी


क्या बच्चा आपकी बात नहीं सुनता? चिड़चिड़ा हो गया है? दोस्तों से भी दूर रहने लगा है? पढ़ाई व खेलकूद में उसका मन नहीं लगता? उसे धुंधला दिखने लगा है? अगर हां तो उसे तुरंत विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाएं, क्योंकि बच्चे के दिमाग (मस्तिष्क) पर मोबाइल एडिक्शन यानी मोबाइल, टैब और स्क्रीन की लत का बुरा असर पड़ रहा है।

तेजी से बढ़ रहे मामले : चिकित्सकों के अनुसार, 10 से 15 साल के उम्र के बच्चे मोबाइल एडिक्शन के चलते डिप्रेशन, एंजाइटी, अटैचमेंट डिसॉर्डर और मायोपिया जैसी बीमारी की जकड़ में आ रहे हैं। रांची के मशहूर मनोचिकित्सा संस्थान रिनपास व सीआइपी के आंकड़ों की मानें तो हर माह इस तरह की शिकायत से पीड़ित 200 से अधिक बच्चे आ रहे हैं। कारण सिर्फ और सिर्फ मोबाइल फोन है।

दो घंटे से अधिक न हो इस्तेमाल : औसतन एक दिन में दो घंटे से अधिक मोबाइल के प्रयोग का सीधा असर बच्चों के दिमाग पर पड़ता है। इससे उनका  शारीरिक विकास भी बाधित होता है। डॉक्टरों का कहनाहै कि बच्चे जब मोबाइल का प्रयोग करते हैं तो वे उसमें खो जाते हैं। मोबाइल के गेम्स की एक छद्म दुनिया होती है। हाल ही में ब्लू वेल जैसे गेम्स ने कैसे कहर बरपाया, यह इसकी एक बानगी है। इसी तरह सोशल नेटवर्क मसलन फेसबुक, ट्विटर, वाट्सअप की लत भी खतरनाक है। अनजान लोगों से रिश्ते, नादानी मेंसूचनाओं का आदान-प्रदान घातक है। अपराधी प्रवृत्ति के लोग आसानी से इनका दुरुपयोग करते हैं। पोस्ट पर अपेक्षा से कम लाइक जैसे मामले भी बच्चों में मानसिक अवसाद पैदा करते हैं। नतीजा यह होता है कि आखिर में नशा और फिर अपराध तक बात पहुंचती है।

मायोपिया : मोबाइल के लगातार इस्तेमाल से मायोपिया (दृष्टि दोष) सबसे पहले शुरू होता है। चमकती स्क्रीन पर लंबे समय तक नजरें टिकाए रहने से यह समस्या हो रही है। आंकड़ों के अनुसार 12 साल तक की उम्र वाले हर 10 में से 2 बच्चे इसकी जकड़ में आ रहे हैं। बच्चों को सिर दर्द की समस्या भी हो रही है।

सख्ती बरतें अभिभावक : माता-पिता को ध्यान देना होगा कि बच्चे को मोबाइल की लत न लगने पाए, भले ही इसके लिए कुछ सख्ती बरतना पड़े। दरअसल, मां-बाप ही बच्चे को मोबाइल की लत लगा रहे हैं। छोटा बच्चा खाना नहीं खा रहा हो तो मोबाइल दिखाते हुए खाना खिलाना, शुरुआत यहीं से होती है। जबकि कम उम्र के बच्चों पर मोबाइल रेडिएशन का असर अधिक पड़ता है।

-रांची के मनोचिकित्सा संस्थान रिनपास और सीआइपी में चल रहा शोध
-खतरनाक है मोबाइल फोन का अधिक इस्तेमाल स्क्रीन की रोशनी से आंखों को नुकसान
-बच्चों को लग रही मोबाइल के इस्तेमाल की लत सीख रहे नशा, अपराध की ओर भी बढ़ रहे कदम
-यहां हर माह पहुंच रहे 200 से अधिक मामले

बच्चे में दिखें ये लक्षण तो हो जाएं सावधान
-समाजिक अलगाव
-डिप्रेशन
-अनिद्रा
-मोटापा
-धुंधला दिखाई देना
-सिर में दर्द रहना
-आंखें भारी रहना
-चिढ़चिढ़ाहट
-बात न सुनना
-गुस्सा



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