२ सितम्बर २०१९
राम मंदिरपर चल रही सुनवाईके मध्य मुस्लिम पक्षके अधिवक्ता (वकील) राजीव धवनने विचित्र बातें कहीं । राजीव धवनने उच्चतम न्यायालयसे पूछा कि क्या न्यायालय वैदिक नियमों और स्कन्द पुराणके अनुसार चलेगा ? उन्होंने न्यायालयको स्मरण कराया कि न्यायालय वैदिक नियमोंसे नहीं चलता और जिस विधान प्रक्रियाके अन्तर्गत न्यायपालिका कार्य कर रही है, उसकी उत्पति १८५८ में हुई । उन्होंने कहा कि हम जिस विधानका पालन करते हैं, वह वैदिक विधान नहीं है ।
हिन्दू पक्षने कहा था कि प्राचीन कालके किसी भी पर्यटक या घुमक्कडोंने वहां मस्जिद होनेका दावा नहीं किया है या ऐसी कोई चर्चा नहीं की है । राजीव धवनने इस बातको उपहासमें उडाया। उन्होंने १३वीं सदीके उत्तरार्धमें सिल्क रोडपर यात्रा करनेवाले व्यापारी मार्को पोलोका उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने भी ‘ग्रेट वाल ऑफ चीन’का कहीं भी वर्णन नहीं किया है । हिन्दू पक्षको उत्तर देते हुए धवनने कहा कि परिक्रमामें पूजा तो है; परन्तु वहां कोई साक्ष्य नहीं है।
मुस्लिम पक्षके अधिवक्ता राजीव धवनने कहा कि वैदिक कालके मध्य मूर्तिपूजा नहीं होती थी । साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वैदिक कालसे पहले कोई मंदिर नहीं हुआ करता था । उन्होंने कहा कि मंदिर या मठ जैसी संस्थाएं बौद्ध कालके बाद अस्तित्वमें आईं । यद्यपि, उन्होंने इस बातको लेकर अस्पष्टता प्रकट की कि मूर्तिपूजन कबसे आरम्भ हुआ ?
स्रोत : ऑप इंडिया
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