एक प्रवचनके मध्य जोधपुरमें अनेक जैन संप्रदायके साधकोंसे परिचय हुआ, वे सब तीन दिवसीय प्रवचनमें आए थे, सभीको तीव्र स्तरके पितृ दोषके कारण विचित्र प्रकारके कष्ट थे, इससे समझमें आता है कि सनातन धर्ममें मृत्यु उपरांत पितृकर्मको इतना महत्त्व क्यों दिया गया है ! और जिन संप्रदायोंने सनातन धर्मके इस अंगको स्वीकार नहीं किया है उनके अनुयायियोंकी कितनी दुर्गति हो रही है ! – तनुजा ठाकुर
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