ख्रिस्ताब्द २००० में मैं अयोध्या में धर्म प्रसार की सेवा कर रही थी । एक दिन संध्या के समय मैं सरयू नदी के तट टहलने गयी । सरयू नदी के पास घाट पर पहुंची तो एक संत को दूर से हमारी दिशा में आते दिखे, पता नहीं कैसे मैंने उन्हे दूर से ही सूक्ष्म अभिवादन किया तो उन्होने मुसकुराते हुए आशीष दी जब हम एक दूसरे के निकट आए तो मैंने राम राम कह उनके चरण स्पर्श किए (वैसे बता दूँ अयोध्या में आज संत नाम मात्र के ही रह गए हैं अधिकतर गेरुयावस्त्रधारी साधक है जिन्हे हम सन्यासी कह सकते हैं) । बाबा ने पूछा “बाहर से रामलला के दर्शन के लिए आई हो क्या ?” मैंने कहा “ नहीं, यहां धर्म प्रसार की सेवा हेतु आई हूं, वे कहने लगे “यह तो बड़ी अच्छी बात है बिटिया, ये बताओ क्या बताती हो लोगों को ?” मैंने कहा “वही जो तुलसीदास जी ने कहा है, कलियुग केवल नामाधारा सुमरही सुमरही नर उतरही पारा”। यह सुन वे बड़े प्रसन्न हो गए कहने लगे, “आज तुमने मुझे प्रसन्न कर दिया पर एक बात बताऊँ बिटिया, जब तक हमारे पास पुण्य की पूंजी नहीं होती ईश्वर का नाम होठों से नहीं निकलता ! “इतना कह वे एक ओर हाथ कर कुछ दिखाने लगे, कहने लगे वह देखो पीपल का पेड़ देख रहो घाट के उपर वहाँ मैंने अखंड रामधुन का संकल्प लिया है, यह जो स्टेशन पर गेरुआ वस्त्र पहन भीखमंगे घूमते हैं इन सबको को जाकर कहा, “राम की नगरी है यहां राम भजन कर, मेरे पास आओ और भगवद भजन करो, मैं तुम्हें 3 रुपए प्रति घंटे दूंगा, तीन समय का भोजन भी दूंगा; परंतु बिटिया, वह देखों वहां दो बूढ़े साधू के सिवा कोई नहीं बैठा है, सब कामचोर हैं और उनके संचित में पुण्य भी तो नहीं है, मुख से राम निकलेगा कैसे ? एक बात गांठ बांध लो बिटिया जिस पर हरि की कृपा होती है वहीं नामजप कर सकता है, विश्वास न हो तो प्रयास कर देखना एक लाख रुपए भी यदि दोगी और किसी के ऊपर ईश्वर की कृपा न हो तो वह दस बार भी राम का नाम नहीं ले सकता है !” यह कह बाबा हाथ उठा आशीर्वाद से आगे बढ़ गए । पीछे से दो वृद्ध साधू की माध्यम धुन में ‘श्री राम जय राम जय जय राम’ का जप ध्वनि प्रक्षेपक से सुनाई दे रहा था !!! तनुजा ठाकुर
Hare ram hare ram ram ram hare hare
Hare krishna hare krishna krishna krishna hare hare.
Pujya Mata’s life incidents are so inspirational. These words are so powerful, can make you a better human being. || Sree Gurudev Dutt||