गुरुकृपासे सब संभव है !


अनेक व्यक्तिको लगता है है कि मेरी हिन्दी और संस्कृत भाषामें मेरी अच्छी पकड है ! परंतु सच तो यह है कि मैंने संस्कृत मात्र दसवीं कक्षा तक ही पढी है और मैं अङ्ग्रेज़ी माध्यममें पढी हूं अतः हिन्दी भी मात्र एक विषय अंतर्गत ही पढी थी और वह भी बारहवीं कक्षा तक ही । एक दिवस वर्ष १९९९ में मुझे एक साधकसे पता चला कि संस्कृतनिष्ठ हिन्दीकी स्थापना करना, यह हमारे श्रीगुरुका उद्देश्य है, बस फिर क्या था उस दिनसे अपने श्रीगुरुके इस मापदंडपर खरे उतरने हेतु संस्कृतनिष्ठ हिन्दी सीखनेका प्रयास आरंभ कर दी और आज जब मैं लेखन करती हूं तब अनेक शब्द जो मैंने कभी सुने भी नहीं हैं वे स्वतः ही अंदरसे सूझते हैं और उसे लिख देती हूं, मुझे भी मेरी इस कृतिपर आश्चर्य होता है ! वैसे ही संस्कृत में यदि कहीं कोई सुभाषित पढती हूं तो अंदरसे ज्ञात हो जाता है कि इसमें त्रुटि है और उसे संशोधित कर ही पाठकोंसे साझा करती हूं ! वैसे यह तो आरंभिक चरण है परंतु अपने श्रीगुरु और मां सरस्वतीपर पूर्ण श्रद्धा है कि वे मुझे ये दोनों ही भाषाएं थोडे समयमें अच्छेसे सीखा देंगी -तनुजा ठाकुर



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