१. ऐसा सोचना अपने धन और संपर्कके बलपर वे अपने सभी पापको ढक कर यहांकी न्याय व्यवस्थासे बच सकते हैं !
२. ईश्वर उनके सर्व पापोंको देख रहे हैं और उन्हें इसके लिए दंड मिलेगा इसपर उनका विश्वास नहीं होता ।
३. उनके लिए स्वयं का सुख अधिक महत्व रखता है उसके लिए वे किसीको भी बलिवेदीपर चढानेको तैयार रहते हैं।
४. ईश्वर दुर्जनोंका संहार करते हैं इस सिद्धान्तपर उन्हें भरोसा नहीं होता।
५. द्रष्टाओंकी भविष्यवाणियोंको तो कंस और रावणने भी माना था; परंतु कलियुगी दुर्जन इतने अहंकारी हैं कि उन्हें लगता है उनके पाप और आतंकका कभी अंत नहीं हो और संतोंकी वाणीपर तो उन्हें अंश मात्र भी विश्वास नहीं होता।
६. कुछ ढोंगी साधूको देखकर उन्हें सभी संत ऐसे ही होते हैं ऐसा लगता है और उन्हें संतोंके सामर्थ्य अर्थात उनके ब्राह्मतेज और क्षात्रतेजकी शक्तिका अनुमान नहीं होता !
७. पाप करते समय उन्हें अत्यधिक सुख मिलता है।
८. राष्ट्र और धर्मकी उपेक्षा कर अपने सुखका विचार कर पाप करना अयोग्य है यह उन्हें पता होते हुए भी इस दृष्टिकोणको अनदेखा करते हैं।
९. यह सृष्टि कर्म सिद्धान्तपर चलती है अतः इस जन्म या अगले जन्ममें, उन्हें उनकी पापोंका दंड भोगना पडेगा इसपर उनका विश्वास नहीं होता।
१०. वे चार्वाक तत्त्वज्ञानको मानते हैं – जब तक जियो घी पियो चाहे उसके लिए कुछ भी करना पडे मरनेके पश्चात किसने देखा है !
ऐसे दुर्जनोंको सीख देने हेतु ईश्वरकी मारक शक्ति कार्यरत हो चुकी है ! अतः दुर्जनों सावधान ! ऐसा बतानेपर भी वे अपनी दुर्जनता नहीं छोडनेवाले हैं यह उनकी विशेषता है !- तनुजा ठाकुर
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