दुर्जनोंको दण्ड ही दिया जाना उचित है


कुछ व्यक्ति, दुर्जनोंका भी प्रेमसे हृदयपरिवर्तन करनेका उपदेश देते फिरते हैं, ऐसे सभी उपदेशक, तालिबानी और ‘इसिस’ क्षेत्रमें जाकर अपने प्रेमका कुछ प्रभाव दिखाएं और उनका मन:परिवर्तन कर सकें तो मैं उनके ‘प्रेम शास्त्र’को मान जाऊं ! उसके लिए अफगानिस्तान या सीरिया जानेकी आवश्यकता नहीं है, हम हिन्दुओंकी अकर्मण्यताके कारण अब कश्मीरमें भी ‘इसिस’ पहुंच चुका है, वहीं जाकर अपने प्रेम शास्त्रसे वहां चल रहे आतंकका खेल और अराजकताको बन्द कराकर, कश्मीरी हिन्दुओंका पुनर्वास करवा दें तो भी बहुत होगा !
  जब राम और कृष्ण जैसे अवतार, दुर्जनोंका, मनःपरिवर्तन नहीं कर पाए तो यह प्रेमयोगकी ‘नौटंकी’ कर अपनी मानसिक नपुंसकताको छुपाए रखनेके लिए अहिंसाका ढोंग करनेवाले उन्हें क्या सुधार पाएंगे ? दुर्जनोंके दण्डितके सम्बन्धमें हम सभी हिन्दुओंके आदर्श भगवान परशुराम, भगवान राम, भगवान कृष्ण, आर्य चाणक्य, गुरु गोविन्दसिंहजी, रानी लक्ष्मीबाई, शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप हैं और सदैव रहेंगे । साम्प्रत कालमें ईंटका प्रत्युत्तर पत्थरसे देनेका काल आ गया है; क्योंकि दुर्जन सांप समान होता है, उसका कितना भी पोषण करें, वह अन्तमें काटेगा ही; अतः वैसे दुर्जनको दण्ड देकर अन्य दुर्जनोंको सतर्क करना और उस दुर्जनको दण्ड देकर उसके पापको न्यून करना यह धर्म है, अधर्म नहीं !



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