साधिकाओंको आश्रममें रहते समय किन बातोंका ध्यान रखना चाहिए ?


पिछले कुछ वर्षोंसे आश्रममें रहनेका सौभाग्य ईश्वरीय कृपासे प्राप्त हुआ है और मैंने पाया है कि आश्रममें आनेवाली साधिकाओंको अनेक बार सामान्य बातें, जो आश्रममें ध्यान रखना चाहिए, वह ज्ञात नहीं होता, इसका भी कारण धर्मशिक्षणका अभाव है; अतः आज यह लेख प्रस्तुत करनेकी आवश्यकता जान पडी ! पुरुष साधकोंके बारेमें भी आवश्यक तथ्य शीघ्र साझा करुंगी ! पालकोंसे भी विनती है कि वे अपनी युवा पुत्रियोंको ये सारे विषय अवश्य पढाएं !

यदि आप आश्रममें सेवा हेतु जाती हैं तो इन बातोंका विशेष रूपसे ध्यान रखें

१. आश्रममें काले-वस्त्र पहन कर न जाएं क्योंकि अनेक कर्मकांडी संत काले वस्त्र धारण किए हुई स्त्रियोंके हाथका  भोजन ग्रहण नहीं करते हैं ! शास्त्र अनुसार काले वस्त्र पहन कर बनाया हुआ भोजन अशुद्ध माना गया है !

२. अपने नख (नाखून) इत्यादि काटकर जाएं, अन्नपूर्णा कक्षकी (रसोई-घरकी) सेवा हेतु आपके नाखून बिलकुल ही कटे एवं स्वच्छ होने चाहिए, यह ध्यान रखें ।

३. आश्रममें यदि आप रुक रही हैं तो नाइटी या बिना दुपट्टेके वस्त्र  इत्यादि पहन कर न घूमें!

४. आश्रममें सलवार-कुरता पहननेपर दुपट्टा व्यवस्थित रूपसे लगाकर सेफ्टीपिन लगाएं, साथ ही बडे गलेवाले वस्त्र पहन कर आश्रममें न आएं !

५ सलवार- कुर्तीमें कुर्तीकी लम्बाई घुटने तक अवश्य हो, यह ध्यान रखें, कुर्तीके दोनों ओरके (साइड स्लिट) कटा भाग कमरके नीचेसे आरम्भ हो, यह ध्यान रखें, सलवार-कुर्तीके वस्त्र पारदर्शी न हो यह ध्यान रखें !

६. यदि आप अपने केश आश्रममें धोती हैं तो उसे खोलकर अन्नपूर्णा कक्षमें न जाएं, केश सूख जानेपर उसे बांधकर ही वहां जाएं ! आश्रममें केश खुले न रखें !

७. आश्रममें उबटन इत्यादि लगाकार न घूमें, अपने कक्षमें लगाकर उसे धोएं !

८. सूतक, पातक एवं रजस्वलाके  समय पूजाघर, अन्न्नापूर्ण कक्षमें न जाएं, न ही आश्रममें यदि कोई  संत हो तो उनकी सेवा करें या उन्हें स्थूल नमस्कार करें !

९. रजस्वलाके चौथे दिवस अपने केश धोकर, बिछावन धूपमें डालकर, चादर इत्यादि धोकर अपनी नित्य सेवा आरम्भ करें !

१०. आश्रममें पाश्चात्य संस्कृति अनुसार वस्त्र पहनकर न आएं !

११. आश्रममें मूल्यवान आभूषण या वस्त्रका प्रदर्शन जहां तक संभव हो न करें !

१२. साडीका पल्लू व्यवस्थित कर उसमें भी पिन लगाएं ! यदि साडी पारदर्शी हो तो उसे अच्छेसे बांधे, ब्लाउजके वस्त्र पारदर्शी हो तो उसमें अस्तर लगवाएं ! ब्लाउज पीछेसे अधिक कटी न हो, यह ध्यान रखें !

१३. आश्रममें यदि स्त्री-पुरुष साधकको कभी अकेले रहना पडे, तो देर रात्रि तक अकेले सेवा न करें, यदि कोई आवश्यक सेवा हो और गुट हो तो अवश्य कर सकते हैं !

१४. आश्रममें पुरुष साधकोंके साथ अनावश्यक हंसी-ठिठोली और वह भी अकेले करना पूर्णरूपसे टालें !

१५. आश्रममें अपने अंतर्वस्त्र सुखाते समय उसपर तौलिया इत्यादि डालें ।

१६. आश्रममें आते समय सात्त्विक श्रृंगार (जैसे पारम्परिक वस्त्र, आभूषण, कुमकुम, गजरे इत्यादि)  करें, गहरे रंगकी लिपस्टिक, अत्यधिक मेकअप इत्यादि लगाकार आना टालें !

१७. आश्रममें सोते समय यदि कक्षका द्वार बंद करना संभव न हो तो अपने शरीरपर चादर डालकर लेटें या सोएं !

१८. पर्स चमडेकी न हो ऐसा भी प्रयास करें ।

१९. यदि विवाहित साधिकाओंका आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशतसे अल्प हो तो धार्मिक कृतियों या संतकी सेवा करते समय या उनका पूजन करते समय सिरको आंचलसे ढंकनेसे सुहागिन साधिकाओंको अधिक चैतन्य प्राप्त होता है और अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षण भी होता है ।

मुझे ज्ञात है यह सब पढकर आपको लगता होगा कि यह सब करना कठिन है; परन्तु ऐसे नियमोंके पालनसे आपके अन्दर दैवी गुणोंका संचार होगा और आप आश्रमके चैतन्यको ग्रहण कर पाएंगे एवं धीरे-धीरे आप ये सारे गुण अपने घरमें उतार पाएंगे ! ध्यान रखें स्त्रीकी आतंरिक सुन्दरता उसके संस्कार, सात्त्विक श्रृंगार और शील रक्षणसे होती है, इससे उनमें नैसर्गिक दैवी आकर्षण और तेज तो निर्माण होता ही, ईश्वरीय शक्तिका कवच होनेके कारण उनका सभी प्रकारसे रक्षण भी होता है !  -तनुजा ठाकुर (३.११.२०१४)



Comments are closed.

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution