धर्मके रक्षण एवं संवर्धन हेतु उसे राज्याश्रय मिलना परम आवश्यक


जितनी सरलतासे एक हिन्दू, मुसलमान या ईसाई बन जाता है, उतनी ही सरलतासे आपने किसी मुसलमान या ईसाईको हिन्दू बनते देखा है क्या ? इसका मूल कारण क्या है ? मस्जिदोंमें मुसलमानोंको मौलवी एवं गिरिजाघरोंमें ईसाइयोंको पादरी अपने ‘तथाकथित धर्म’की घुट्टी बाल्यकालसे ही पिलाते हैं; वहीं हिन्दुओंको अपने महान धर्म और संस्कृतिके विषयमें विधिवत ज्ञान देनेवाले गुरुकुल शिक्षण पद्धतिके नष्ट हो जानेके पश्चात अब उसे सूत्रबद्ध पद्धतिसे धर्मशिक्षण कोई नहीं देता; अतः धर्मशिक्षणविरहित हिन्दुओंमें धर्माभिमान नहीं होता और इस कारण वह अन्य अहिन्दू पन्थोंके चक्रव्यूहमें छल, बल, भय या लोभसे सहज ही फंस जाते हैं  और स्वधर्मको त्याग देते हैं, जिसका त्याग करना शास्त्रोंमें महापाप माना गया है । स्वतन्त्रता पश्चात जिस तीव्र गतिसे हिन्दुओंका अन्य अहिन्दू पन्थों एवं ‘तथाकथित धर्मों’में परिवर्तन हुआ है, वह भारतके इतिहासमें आजतक नहीं हुआ, इससे ही सनातन धर्मके रक्षणके सम्बन्धमें इस लोकतान्त्रिक व्यवस्थाकी अकर्मण्यता पुनः सिद्ध होती है । इस स्थितिको परिवर्तित करने हेतु शीघ्र अति शीघ्र धर्म सापेक्ष हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना करना अनिवार्य होगा, अन्यथा आजसे ५० वर्षोंके पश्चात भारतमें हिन्दुओंका अल्पसंख्यक होना या उनके अस्तित्वका ही नष्ट होना निश्चित है । ध्यान रखें ! जबतक धर्मको राज्याश्रय नहीं मिलता तबतक उसका रक्षण एवं संवर्धन करना, दोनों ही अत्यन्त कठिन होता है ।- तनुजा ठाकुर (२४.७.२०१६)



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