समर्पित शिष्यके ऊपर नहीं लागू होते हैं पञ्च महाऋण ! सामान्य गृहस्थ या व्यक्तिको, देव, ऋषि, पितर, अतिथि एवं समाजके (या भूत ऋणके) प्रति पञ्च ऋणका भुगतान करना पडता है, इस हेतु शास्त्रोंमें पञ्च महायज्ञका विधान बताया गया है, तभी उनका जीवन सुखी होता है । इसके विपरीत जो भी शिष्य पूर्ण रूपेण गुरुके शरणागत होकर साधनारत रहता है (पूर्ण समय गुरु या गुरु कार्य हेतु समर्पित रहता है), उनपर ये ऋण लागू नहीं होते हैं एवं समर्पित शिष्यकी आध्यात्मिक प्रगति द्रुत गतिसे होनेका एक कारण यह भी है । इसीसे गुरुका महत्त्व कितना है ?, यह ज्ञात होता है । ऐसे परमब्रह्मस्वरूपी गुरु तत्त्वको नमन है । – तनुजा ठाकुर
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