यज्ञोपवीत क्यों धारण करना चाहिए ? (भाग – ३)


यज्ञोपवीतको ‘व्रतबन्ध’ भी कहते हैं । व्रतोंसे बन्धे बिना मनुष्यका उत्थान सम्भव नहीं । यज्ञोपवीतको व्रतशीलताका प्रतीक मानते हैं । इसीलिए इसे सूत्र (फार्मूले, गूढ तत्त्व) भी कहते हैं ।
यज्ञोपवीतके धागोंमें नीतिका सम्पूर्ण सार सन्निहित कर दिया गया है । जैसे कागदका स्याहीके सहारे किसी नगण्यसे पत्र या तुच्छ सी लगनेवाली पुस्तकमें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ज्ञान-विज्ञान भर दिया जाता है, उसी प्रकार सूत्रके इन धागोंमें जीवन- विकासका सारा मार्गदर्शन समाविष्ट कर दिया गया है । इन धागोंको कन्धेपर,  हृदयपर, पीठपर प्रतिष्ठित करनेका प्रयोजन यह है कि सन्निहित शिक्षाका यज्ञोपवीतके धागे स्मरण कराते रहें, ताकि उन्हें व्यवहारमें उतारा जा सके । यज्ञोपवीतको मां गायत्री और यज्ञ पिताकी संयुक्त प्रतिमा मानते हैं । गायत्री, प्रत्येक भारतीय द्विजका उद्धारक मन्त्र है । उसे यज्ञोपवीतके समयपर ही विधिवत आचार्यद्वारा दिया जाता है । यज्ञोपवीत धारण करनेवालेने कमसे कम तीन माला गायत्रीका मंत्र प्रतिदिन प्रातः और संध्याकाल, शरीर शुद्धिके पश्चात अवश्य ही करना चाहिए !
यज्ञोपवीतकी पवित्रता बनाए रखने हेतु कुछ नियम पालने आवश्यक होते हैं, जैसे-
(१) यज्ञोपवीतको मल-मूत्र विसर्जनके पूर्व दाहिने कानपर चढा लेना चाहिए  और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए । इसका स्थूल भाव यह है कि यज्ञोपवीत कमरसे ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो । अपने व्रतशीलताके संकल्पका ध्यान इसी बहाने बार-बार किया जाए । इसका पीछे शारीरिक और अध्यात्मिक कारण हम अगले लेखमें बताएंगे ।
(२) यज्ञोपवीतका कोई तार टूट जाए या ६ माहसे अधिक समय हो जाए, तो उसे परिवर्तित कर देना चाहिए । जिसे खण्डित प्रतिमा देवघरमें नहीं रखते हैं वैसे ही खण्डित सूत्र शरीरपर नहीं रखते । धागे कच्चे और गंदे होने लगें, तो पहले ही परिवर्तित कर देना उचित होता है ।
(३) जन्म-मरणके सूतकके पश्चात इसे परिवर्तित कर देनेकी परम्परा है ।
(४) यज्ञोपवीत शरीरसे बाहर नहीं निकाला जाता ।। स्वच्छ करनेके लिए उसे कण्ठमें पहने रहकर ही घुमाकर धो लेना चाहिए । भूलसे उतर जाए, तो प्रायश्चितकी एक माला जप करने या परिवर्तित कर लेनेका नियम है । जिन लोगोंका यज्ञोपवीत संस्कार हो चूका हो और उन्होंने अज्ञानतावश इसे निकाल दिया हो उन्होंने प्रायश्चित करके ही इसे धारण करना चाहिए ! जैसे सौभग्यवती स्त्रीके लिए मंगलसूत्रका अत्यधिक महत्त्व होता है उसीप्रकार द्विजके लिए इसका महत्त्व होता है !
(५) देव प्रतिमाकी मर्यादा बनाए रखनेके लिए उसमें चाभीके गुच्छे आदि न बांधे । इसके लिए भिन्न व्यवस्था रखें । बालक जब इन नियमोंके पालन करने योग्य हो जाएं, तभी उनका यज्ञोपवीत करवाना चाहिए ।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution