जनवरी १७, २०१९
उच्चतम न्यायालयने महाराष्ट्रमें नृत्य मद्यशालाके (डांस बार) लिए अनुमतिपत्र (लाइसेंस) और उसके व्यापारपर प्रतिबन्ध लगानेवाले कुछ प्रावधान बृहस्पतिवार, १७ जनवरीको निरस्त कर दिए ! न्यायालयने यह कहकर राज्यमें ‘डांस बार’ पुनः खोलनेका मार्ग प्रशस्त कर दिया कि नियम निर्धारित हो सकते है; परन्तु पूर्ण प्रतिबंध नहीं हो सकता । न्यायमूर्ति एके सीकरीकी अध्यक्षता वाली खण्डपीठने महाराष्ट्रके विश्रामगृह, रेस्तरां और मद्यशालामें कामुक नृत्यपर प्रतिबन्ध और महिलाओंकी गरिमाकी रक्षा सम्बन्धी विधान, २०१६ के कुछ प्रावधानोंको निरस्त कर दिया है । इसमें ‘सीसीटीवी’ लगानेकी अनिवार्यता और मद्यशाला कक्ष (बार रूम) तथा नृत्य स्थलके (डांस फ्लोरके) मध्य विभाजन जैसे प्रावधान सम्मिलित हैं ।
न्यायालयके अनुबन्ध (नियम) –
* नृतकीको पैसे दिए जा सकते है; परन्तु पैसे नहीं उछाले सकते ।
* मद्यशालाएं (बार) संध्या ६ बजेसे रात्रि ११.३० बजेतक खुल सकेंगीं ।
* इनमें सीसीटीवी नहीं होगा ।
* इनमें मद्य परोसने और ‘ऑर्केस्ट्रा’को भी मिली आज्ञा । * नृत्य क्षेत्र (डांस एरिया) भिन्न रखनेका अनुबन्ध हुआ अस्वीकृत ।
* ‘बार’में अश्लीलता नहीं होनी चाहिए ।
* धार्मिक स्थलों और शिक्षण संस्थाओंसे एक किलोमीटर दूर खोलनेकी अनिवार्यता सम्बन्धी प्रावधान किया निरस्त !
न्यायालयने अपने आदेशमें कहा कि २००५ के पश्चात अबतक एक व्यक्तिको भी नृत्य मद्यशालाका (डांस बारका) अनुमतिपत्र (लाइसेंस) नहीं दिया गया । ऐसा नहीं किया जा सकता । इस सम्बन्धमें नियम निर्धारित किए जा सकते हैं; परन्तु पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता । उल्लेखनीय है कि न्यायालयने २०१६ महाराष्ट्र विधानको चुनौती देनेवाली विश्रामगृह एवं रेस्तरां स्वामियोंकी याचिकाओंपर अपना निर्णय गत वर्ष अगस्तमें सुरक्षित रखा था ।
“यह है महान भारतका तथाकथित न्यायतन्त्र ! पूर्वकालमें राजा इसप्रकारके निर्णय नहीं देते थे; क्योंकि राजाकी शिक्षा व संस्कार गुरूकुलद्वारा पोषित होते थे । आजके मैकॉले शिक्षित बुद्विजीवी, जिन्हें न ही परिवारसे धर्मका ज्ञान मिलता है और न ही विद्यालयोंसे, वे धर्महीन निर्णय कर रहे हैं और शेष कार्य धर्महीन व दूरदर्शिताहीन लोकतन्त्रने पूर्ण कर दिया है । तथाकथित धाराओंका नाम लेकर न्यायालय मनमाने निर्णय दे रहे हैं, जिससे समाजमें उच्छृंखलता निर्माण हो रही है और उनके निर्णयोंसे होनेवाले परिणामका उन्हें कोई दुःख भी नहीं होता है; क्योंकि चिन्तनके लिए धर्म संस्कार ही नहीं है । इसीका परिणाम है कि राजाधिराज छत्रपति शिवाजी महाराजके महाराष्ट्रमें अब नग्नता व पशुताको पोषित करनेवाले ‘बार’को पोषित किया जा रहा है; अतः अब केवल धर्मराज्यकी स्थापनाकर ही इस स्थितिको परिवर्तित किया जा सकता है, अन्यथा ऐसे निर्णय एक दिन ऋषियोंकी समस्त परम्पराओंको ही निगल लेंगें !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : पंजाबकेसरी
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