आपातकालमें देवताको ऐसे करें प्रसन्न ! (भाग-१)


मैंने पाया है कि जिस प्रकारका धर्माचरण आजसे २० वर्ष पूर्वतक हिन्दू स्त्रियां अपने अन्नपूर्णा कक्षमें पालन करती थीं, वह आजकी स्त्रियां नहीं करती हैं । इसके पीछे दो कारण मुझे विशेषरूपसे समझमें आ रहे हैं और वे हैं या तो माताओंने अपनी पुत्रियोंको यह शिक्षा नहीं दी या आलस्यमें स्त्रियां ऐसा नहीं करती हैं । अब तो आपातकाल आरम्भ हो चुका है निधर्मी शासन भी मात्र तीन माहमें ही अपने हाथ ऊपरकर यह घोषणाकर चुका है कि अब हमें कोरोनासे साथ जीना सीखना होगा । वस्तुत: यदि हमारे शासकगण धर्मनिष्ठ होते और सन्तोंके मार्गदशनमें राज्यका शासन चलाते तो आज स्थिति ऐसी नहीं होती; क्योंकि ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका कोई समाधान नहीं होता; किन्तु अब तो पानी सिरके ऊपरसे चला गया है । अनेक सन्त बार-बार कह रहे थे कि आनेवाला काल भीषण होगा, साधना करें व करवाएं, यदि शासकगणने ऐसा किया होता तो आज स्थिति कुछ और होती ।
       साधको ! इसलिए आज और अभीसे ईश्वर प्रसन्न रहे और इस आपातकालमें उनका संरक्षण मिले, ऐसा प्रयास करें ! सर्वप्रथम आपको अगले चार वर्ष नित्य, दो समयका प्रसाद (भोजन मिले ) इस हेतु आपको आजसे कुछ तथ्य बताउंगी उसका पालन करनेका प्रयास करें ! मैंने देखा है कि आज अनेक धर्मनिष्ठ विप्र, साधक, संन्यासी एवं सन्त सामान्य गृहस्थके घर भोजन नहीं करना चाहते हैं; क्योंकि उनके घरकी स्त्रियां अन्नपूर्णा कक्षको अपने रज-तम आचरणसे अशुद्धकर देती हैं; इसलिए उनकेद्वारा बनाया हुआ भोजन अपवित्र होता है । तो आपको सर्वप्रथम आपके रसोईघरको अन्नपूर्णा कक्ष बनानेके कुछ तथ्य बताती हूं, इसका पालन करें ! ध्यान रहे रसोईघरमें अन्न कम पड सकता है, अन्नपूर्णा कक्षमें जहां सम्पूर्ण ब्रह्माण्डको पोषण करनेवाली मां अन्नपूर्णा विराजती हों, वहां कभी कोई अभाव नहीं हो सकता है । इस गृहबन्दीमें मैंने इसकी प्रतीति ली है । आप सबको पता है कि इंदौर कोरोना महामारीसे अत्यधिक प्रभावित है; किन्तु तब भी हमें आश्रममें जो मात्र ४७ किलोमीटरपर है और वहींसे सब कुछ आता है और गृहबन्दीके कारण वाहनोंका भी आवागमन डेढ माह नके समान था, तब भी हमें किसी भी वस्तुकी कमी नहीं हुई; अपितु यह कहना चाहूंगी कि हमें सब कुछ इतना सहज मिल रहा है, वह भी उचित मूल्यमें । कुछ वस्तुएं तो हमें ऐसे मिल रही हो, जैसे मां अन्नपूर्णाने ही उनकी आपूर्ति की हों । मैं अप्रैल २०१३से ही आश्रमकी पूर्णकालिक स्त्रियों और गृहस्थ स्त्रियोंसे धर्मपालन करनेका प्रयास कराया है; इसलिए आज अपने अनुभवके आधारपर इस लेखमालामें पहले उसे ही साझा करूंगी ।
      १. रात्रिमें सोनेके पश्चात बिना स्नान किए अन्नपूर्णा कक्षमें न जाएं ! यह घरके सभी सदस्योंपर लागू होता है । इससे एक तो आपमें प्रातः सूर्योदयसे पूर्व स्नान करनेकी वृत्ति निर्माण होगी एवं अन्नपूर्णा कक्ष अर्थात साक्षात अन्नपूर्णाका मन्दिर है, यह भाव निर्माण होगा । यदि जल इत्यादि ‘गर्म’ करना हो तो बिना शौच किए उसे ‘गर्म’ कर लें ! चाय इत्यादि भी स्नानकर ही पिएं अर्थात पानीको ‘गर्म’ करनेके अतिरिक्त कोई भी आहार बिना अन्नपूर्णा मांकी पूजा किए न बनाएं ! यह इसलिए भी करें कि आपातकालमें भी आपके घर चूल्हा जले ! अग्नि देव और अन्नपूर्णा मांकी कृपा हेतु इस आचरणको अंगीकृत करें !


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