भारतमें इसके नामपर उपद्रव, परन्तु १०० वर्षीय विदेशी महिलाके स्वास्थ्यका रहस्य है भारतसे सीखा योग !!


अप्रैल २३, २०१९

 

हार्टस्डेलमें रहनेवाली योग प्रशिक्षिका पोर्सो लिंचकी आयु १०० वर्ष है; परन्तु उनका जोश ऐसा है कि अभी रुकनेका कोई मन नहीं है । उनके जीवनका मूलमन्त्र है, खुला हृदय और स्वस्थ ढंगसे जीवनको आगे बढाते रहो । निस्सन्देह चारबार उनके कूल्हेका प्रत्यारोपण हो चुका है; परन्तु लिंच अभी भी ‘बाॅलरूम डांसिंग’ पसन्द करती हैं । लिंच भारतमें जन्मी थीं । अनुकरणीय उपलब्धियोंके लिए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीने उन्हें पद्मश्रीसे सम्मानित किया था ।

वे बताती हैं कि कैसे उनका झुकाव योगकी ओर हुआ । ७ वर्षकी आयुमें भारतमें समुद्र तट शपर घूमते हुए उन्होंने कुछ लडकोंको योग करते देखा, तभी उन्होंने उनके जैसे करनेका मन बनाया ।

लिंचका कहना है कि एक निकटवर्ती सम्बन्धीने उन्हें यह कहकर रोका कि यह लडकोंके स्टेप्स हैं; परन्तु लिंचका उत्तर था कि जब लडके ऐसा कर सकते हैं तो वह क्यों नहीं ? उसके पश्चात योगमें उन्होंने महारथ प्राप्त की ।  

लिंच जब किशोरावस्थामें पहुंचीं तो वह लोगोंको यह बता पा रही थीं कि कैसे स्वस्थ ढंगसे श्वास ली जाती है । विशेषकर उन लोगोंको, जिनके उठने-बैठनेका ढंग अत्यधिक अनुचित था । लिंचका कहना है कि ऐसे लोगोंको वह समझाती थीं कि उनके फेफडे पेटमें नीचेकी ओर नहीं वरन उससे ऊपर हैं ।  

लिंच अपना मनोबल बढानेके लिए प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर सूर्यके सामने खडी होती हैं और फिर उसे देखकर कहती हैं कि आज उनके जीवनका सबसे उत्तम दिन आनेवाला है । उनका कहना है कि वास्तवमें उनका दिन उत्तम होता है ।

१३ अगस्तको १०१ वर्षकी होने जा रहीं लिंचके लिए सबसे बडा संबल उनके विद्यार्थी हैं । वह एक ‘वाइन सोसायटी’की भी सदस्या हैंह। जब भी वे अकेली होती हैं, उनके पुराने और नए विद्यार्थी मनोबल बढाते हैं । उनसे योग सीखनेवाली सिल्विया सेमिल्टन बेकरका कहना है कि लिंचका जीवन एक योग पथ है ।

 

 

“एक ओर समूचा विश्व भारतद्वारा प्रदत्त योगका लाभ लेकर जीवनको उत्तम बना रहा है, वहीं दूसरी ओर घृणा और अज्ञानसे भरे लोग इसे हिन्दू-हिन्दू करके अपमानित करते हैं । उन्हें यह समझ नहीं आता है कि शरीर मुस्लिम हो या ईसाई सबका एक ही जैसा है तो योग सबके लिए भिन्न कैसे हो सकता है ? हां, इस बातका दुःख मनाया जा सकता है कि यह हिन्दू धर्मद्वारा प्रदत्त है; परन्तु ऐसे तो इन दोनों ही पन्थोंने मानवताको दिया ही क्या है ? तो इसप्रकारसे तो इन्हें सदैव ही शोक मनाना चाहिए ! योग मनुष्यको मनुष्य बनाता है, स्वस्थ रहकर श्वास लेना सिखाता है; क्योंकि आजकी दौड-भागमें हम श्वास लेना भी भूल गए हैं । वस्तुतः योग रहित मनुष्यका जीवन पशु समान ही है ।”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : भास्कर



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