आध्यात्मको आत्मसात कैसे करें ?


एक व्यक्तिने लिख कर भेजा है कि आप हमें ऐसे ‘व्हाट्सएप’ गुटमें सहभागी करें, जिसमें प्रतिदिन आपके नूतन लेख एवं सत्संग आते हों !
ऐसे सभी व्यक्तियोंको सूचित कर दें कि हमारा ऐसा कोई गुट नहीं, जिसमें प्रतिदिन नूतन लेख और सत्संग प्रसारित किए जाते हैं । हम पुराने सुवचन, लेख एवं सत्संग इसलिए पुनः प्रसारित करते हैं; क्योंकि हमारे प्रसारका मूल उद्देश्य है, समाजमें साधकत्व निर्माण करना । धर्मप्रसारके मध्य ऐसे अनेक विद्वतजनोंसे मेरा साक्षात्कार हुआ है जिनके पास मात्र शाब्दिक तत्त्वज्ञान होते हैं । आद्य गुरु शंकराचार्यने विवेक चूडामणिमें कहा है ‘शब्दजालं महारण्यं चित्त भ्रमणकारणं, अर्थात शब्दोंका ज्ञान यदि आत्मसात न किया जाए तो तथाकथित तत्त्वज्ञानी व्यक्ति, तत्त्वज्ञानके शब्द रुपी जालमें फंसे हुए दिखाई देते हैं ।  शब्दको आत्मसात करनेके दो माध्यम हैं – उसे एकाग्रतापूर्वक पढकर जीवनमें उतारा जाए या विवेकसे उसे अपने चित्तमें ग्रहण किया जाए, इन दोनोंके लिए महत्त्वपूर्ण विषयको बार-बार पढनेकी आवश्यकता होती है या तत्त्वज्ञानको सुननेकी आवश्यकता होती है; अतः हम महत्त्वपूर्ण तथ्योंको पुनः प्रसारित करते हैं । साथ ही प्रतिदिन नूतन लोग हमारे गुटमें जुडते रहते हैं, पुनः प्रसारणका यह भी एक कारण है ।



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