कुछ दिवस पूर्व एक परिचितसे मिलना हुआ । उन्होंने कहा, “मेरी पुत्रीका विवाह निश्चित हो गया है । लडका शासकीय (सरकारी) नौकरी करता है और खाते-पीते घरानेका है और ‘संस्कारी’ भी है । सबसे अच्छी बात है लडकेकी ‘ऊपरी कमाई’ भी है ।” मैंने कहा, “परन्तु ऊपरी कमाई करना तो पाप है ।’ उन्होंने कहा, “आजकल तो यह सभी करते हैं अब यह पाप नहीं रहा ।” देखिए ! भारतीयके लिए भ्रष्टाचार करना अब पाप नहीं रहा, ‘ऊपरी कमाई’ करनेवाला पात्र अब ‘संस्कारी’ कहा जाने लगा है । वाह रे ! स्वतन्त्र भारतके रचयिता अच्छी राष्ट्रीयताके मापदण्ड निर्माण किए हैं, तेरी जय हो । – तनुजा ठाकुर
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