आजके हिन्दुओंकी वृत्ति !
हमने ‘दैनिक’ आरम्भ किया है; क्योंकि अब अन्तर्जालकी सहज उपलब्धता अधिक समय नहीं रहेगी । कालानुसार यह सब समाजसे लुप्त हो जाएगा; अतः हमने सोचा कि जितना समय शेष है, उसमें अधिकसे अधिक लोगोंको राष्ट्ररक्षण और धर्मशिक्षण देने हेतु प्रयास करना चाहिए ! वैसे मैं किसी विवेकशून्य व्यक्तिके हाथमें विज्ञानकी इस उपलब्धिको देनेके भी पक्षमें नहीं हूं । यदि धर्म और संस्कृतिको बचाना है तो सामान्य व्यक्तिके पास ऐसी सुविधाओंका न होना ही बुद्धिमानी होगी । मैं तो पिछले १२ वर्षोंसे अन्तर्जालपर क्रियाशील रही हूं और इसने कैसे समाजका पतन किया है ?, वह सब देख रही हूं; अतः यदि यह सामान्य व्यक्तिकी पहुंचसे बाहर हो जाए तो उनके लिए ही लाभकारी होगा; किन्तु जबतक यह है तो इस शिवत्वहीन माध्यमका उपयोगकर समाजको धर्माभिमुख करनेका प्रयास कर रही हूं । इस हेतु थोडा और श्रम करना पडता है । नींद और भी कम लेने लगी हूं । अब तो शरीर भी विद्रोह करता है, जैसे ही नींद कम होती है तो मितलीसी आने लगती है । मैं समझ जाती हूं कि शरीर कह रहा है कि अब विश्राम करो, नहीं तो मैं तुम्हारे विरुद्ध विद्रोह कर दूंगा ! ऐसी स्थितिमें समाजकी वृत्ति क्या है ?, यह बताती हूं ।
मैं ‘गूगल हिन्दी इनपुट टूल’से टंकण (टाइपिंग) करती हूं तो अनेक बार वह ‘बाय डिफाल्ट’ कोई और शब्द ले लेता है । इससे पहले मैं ‘aps फॉण्ट’में ‘टाइप’ करती थी तो ‘टाइपिंग’में कोई चूक नहीं होती थी; किन्तु अभी समय अभावके कारण मैं ‘नेट फ्रेंडली फॉण्ट टाइप’ करना नहीं सीख पा रही हूं; इसलिए मेरे लेखोंमें चूकें रह जाती हैं । एक साधकको शुद्धि हेतु भेजती हूं; किन्तु कुछ न कुछ कारणसे उनसे भी कुछ अशुद्धियां रह जाती हैं तो कुछ साधक मुझे दैनिककी अशुद्धियां, जो पाठक भेजते हैं, उनका पटलचित्र (स्क्रीनशॉट) भेजते हैं तो मैं उनसे कहती हूं कि यदि उनका यदि भाषापर अच्छा प्रभुत्व है तो उन्हें मात्र आधा घण्टा प्रतिदिन देनेको बोलें; किन्तु उनका कोई प्रत्युत्तर नहीं आता है । मेरे पास दो पर्याय हैं, या तो मैं यह ज्ञान सप्ताहमें एक बार आपके पास पूर्णतः शुद्ध व्याकरण व वर्तनीके साथ प्रेषित करूं या आपातकालकी तीव्रताको देखते हुए एवं समय अल्प बचा है, यह देखते हुए जितना हमसे सम्भव है, वह आपसे साझा करूं ! विश्वमें अगले चार वर्षोंमें जो होगा, उसकी कल्पना आपको नहीं है; किन्तु जिन्हें है, वे किसी रूपमें आपतक पहुंचा दें और उसका उपाय भी बता दें तो आपमें अंश मात्रका कृतज्ञताका भाव होना चाहिए, ऐसा मुझे लगता है । एक बार एक चिकित्सकने मेरे स्वास्थ्यको देखकर कहा कि आपकी निद्रा बहुत कम होती है एवं वह टूटती रहती है । मैंने कहा, “महोदय जिस मांको यह ज्ञात हो जाए कि दिशाहीन बच्चोंपर संकट नहीं, वरन घोर संकट आनेवाला है, उसे नींद कैसे आ सकती है ?” सच है, कल भी एक बजे रातमें ही उठ गई ! तो इस आपताकालमें जो हमसे हो रहा है हम आपसे साझा करनेका प्रयास कर रहे हैं और चूकोंके लिया विनम्रतापूर्वक क्षमा मांगते हैं ।
एक और प्रसंग बताती हूं, हमारे आश्रममें दो माह एक वानप्रस्थी आश्रममें आकर सेवा दे रहे थे । एक दिवस उन्होंने देखा की ५० के स्थानपर ४९ पोटली ही सीमेंट आई थी । दूसरी बार उन्होंने देखा कि ‘सरिया’ भी जितनी भारी आनी चाहिए था, उसमें एक भारी कम थी । उन्होंने मुझे सब बताया । मैंने कहा, “यह तो मुझे ज्ञात है तो आप यहां आकर सेवा दें; क्योंकि आज हिन्दुओंको मन्दिर या आश्रमके साथ भी धोखाधडी करनेमें अंशममात्रका भी संकोच नहीं होता है, तभी तो यह आपातकाल आया है; किन्तु वे तो गृहबन्दीमें भी जाने हेतु आतुर थे । वे घरमें ऐसे ही बैठे रहते हैं; किन्तु आश्रम आकर सेवा नहीं देना चाहते हैं । मैंने उनसे कहा, “मुझे ज्ञात है कि यह हो रहा है; किन्तु पुनः मेरे पास दो पर्याय हैं, या तो धर्म सिखाएं या निर्माण कार्यका सब लेखा-जोखा रखें !” मैंने आपातकालको ध्यानमें रखते हुए दूसरे पर्यायको चुना है ।
आज इस देशमें जो स्थिति है उसके पीछेका आपको कारण बता रही हूं; इसलिए व्यवस्था परिवर्तन, जो हिन्दू राष्ट्रके माध्यमसे होगा, वही एकमात्र विकल्प अब बचा है और इसी हेतु हम सभी राष्ट्रनिष्ठ एवं धर्मप्रसारक प्रयत्नशील हैं । – (पू.) तनुजा ठाकुर, सम्पादक
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