यह तो आपको सबको समझमें आ ही गया होगा कि नैसर्गिक आपदाओंको रोकनेकी क्षमता न सामान्य मनुष्यमें है और न ही आजके आधुनिक विज्ञानमें; इसलिए ‘मात्र और मात्र’ आध्यात्मिक उपाय ही आपको इनसे रक्षण करनेमें सक्षम होते हैं । २०१८ से २०२२ तकके कालखण्डमें होनेवाले नैसर्गिक आपदाओंमें मनुष्य बल और राष्ट्रकी सम्पत्तिकी भीषण हानि होगी, ऐसा सन्तोंने बताया है ! इस बारके केरलके बाढके विषयमें कहा जा रहा है कि ऐसी विभीषिका ९४ वर्ष पश्चात आई है, अभी तो ऐसी और भी अनेक विभीषिकाएं हम सबको देखनी है, जो एक सहस्र वर्षमें भी नहीं आई होंगी ! जी हां, जब समष्टि पाप बढ जाता है तो ऐसी विनाश लीलाएं होती हैं !
चूंकि समष्टि पापके कारण ये प्राकृतिक आपदाएं आएंगी; अतः इससे प्रत्येक व्यक्ति कम-अधिक प्रमाणमें प्रभावित होगा ही; किन्तु यदि हम ईश्वरकी कृपा सम्पादित करने हेतु उनके भिन्न घटकोंको प्रसन्न रखें तो हमें निश्चित कम हानि होगी; किन्तु हानि तो सभीको होगी, इसकी पूर्वसिद्धता सभी करके रखें; क्योंकि इस पृथ्वीपर अराजक तत्त्वोंको बढने एवं धर्मके ह्रासमें हम सबकी अकर्मण्यता उत्तरदायी है ।
तो आइए आपातकाल हेतु कुछ आध्यात्मिक उपायके विषयमें जान लेते हैं और इसकी पूर्वसिद्धता अभीसे करते हैं –
१. अपने घरके वास्तुदेवताको प्रसन्न रखें, इस सम्बन्धमें आपको हम समय-समय वास्तुसे सम्बन्धित जानकारी देते ही रहते हैं, उन सबका पालन करें । आपका वास्तु जितना सात्त्विक होगा, प्राकृतिक आपदाओंमें आपको उतनी ही कम हानि होगी एवं वे अति प्रसन्न हों तो आपका रक्षण करने हेतु सूक्ष्म जगतसे आपको सहायता प्रदान करेंगे, जिसका स्थूल परिणाम आपको स्पष्ट दिखेगा ।
२. अपने ग्राम देवताको भी प्रसन्न रखें । भारतके प्रत्येक ग्रामके ‘ग्राम देवता’ होते ही हैं और आज भी गांवोंमें ग्राम देवताके वार्षिक उत्सव होते हैं । ऐसे उत्सवोंको भावपूर्वक करनेका प्रयास करें । ग्राम देवताके मन्दिर भी होते हैं, वहां विधिवत पूजा-अर्चना जो चली आ रही हो, उसे चालू रखें । ग्राम देवताके प्रसन्न रहनेसे नैसर्गिक आपदा आनेपर वे देवताओंसे सहायता लेकर गांवके लोगोंकी सहायता करते हैं । (क्रमश:)
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