यदि स्वतन्त्रताके समय ही आरक्षण जैसे विधानका आरम्भ नहीं किया गया होता तो आज देशकी आरक्षणके कारण यह दुर्दशा नहीं होती । समाजमें व्यक्तिको ‘पद’ सदैव उसके गुण और प्रतिभाके आधारपर मिलना चाहिए, न कि जन्मके आधारपर; हिन्दू राष्ट्रमें कहीं भी और किसी भी क्षेत्रमें कोई आरक्षण नहीं होगा । हमारे धर्म और संस्कृतिमें सदैव ही ‘पद’ योग्यता अर्थात गुण-कर्म अनुसार ही दिया गया है और इसी सनातन परम्पराको पुनर्स्थापित करनेकी आवश्यकता है, तभी समाजसे यह अराजकता समाप्त हो सकती है ।
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