आश्रमका महत्त्व (भाग – ८)  


आश्रम जीवनद्वारा चारों वर्णोंकी साधना भी है सम्भव : आश्रममें चारों वर्णकी साधना सहज ही होती है, समाजको धर्मशिक्षण देने हेतु साधक अपनी योग्यता अनुरूप बुद्धिका उपयोग कर सेवा करते हैं; अतः ब्राह्मण वर्णकी साधना होती है । आश्रममें हम उसकी स्थूल और सूक्ष्म आसुरी शक्तियोंसे रक्षण हेतु सदैव तत्पर रहते हैं; अतः क्षत्रिय वर्णकी साधना होती है । आश्रमका कार्य दानसे चलता है; अतः आश्रमसे जुडे भक्त अपना सर्वस्व या यथासम्भव अर्पण तो करते ही हैं, साथ ही समाजसे भिक्षाटन करते हैं और जो धन मिलता है, उसका सदुपयोगकर ईश्वरीय कार्य किया जाता है; अतः वैश्य वर्णकी सेवा होती है । आश्रममें स्वच्छता, रख-रखाव इत्यादिकी सेवा होती है; जो हमें शरीरसे करना पडता है, इससे शूद्र वर्णकी साधना भी होती है; इसलिए आश्रममें आकर रहनेपर सभी वर्णोंके अनुसार साधना करनेका यथासम्भव वातावरण मिलता है, इससे हमारी आध्यात्मिक प्रगति द्रुत गतिसे होती है ।



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