आश्रम व्यवस्था (भाग – १)


ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास ये चार आश्रम कहलाते हैं । श्रमसे जीवनको सफल बनानेके कारण इन्हें आश्रम कहा जाता है ।
१) ब्रह्मचर्य-आश्रम (साधना एवं धर्मके संस्कारको ग्रहण करनेके लिए)
२) गृहस्थ-आश्रम (उत्तम गुणोंके आचरण और श्रेष्ठ पदार्थोंकी उन्नतिसे सन्तानोंकी उत्पत्ति और वानप्रस्थ आश्रम हेतु प्रवृत्त होनेके लिए सुखका उपभोग करते हुए साधनाके संस्कारको अंकित करना एवं उसे पुष्ट करना)
३) वानप्रस्थ-आश्रम (ब्रह्म-उपासना, एकान्त-सेवन, अंतर्मुखताके लिए)
४) संन्यास-आश्रम (परब्रह्म, मोक्ष, परमानन्दको प्राप्त करनेके लिए)
जो मनुष्य धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष इन चारों पुरुषार्थोंको प्राप्त करना चाहता है, उसके लिए यह आश्रम व्यवस्था, जीवनकी नैसर्गिक अवस्था अनुरूप है । वस्तुतः सामान्य व्यक्ति यदि आश्रम व्यवस्था अनुसार सर्व कर्म करे तो उसकी आध्यात्मिक प्रगति सहज ही हो जाती है यह इस आश्रम व्यवस्थाकी विशेषता है ।


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