इस माह १ सितम्बरको ऑस्ट्रियामें हुए सत्संगमें आये हुए एक हिन्दुत्वनिष्ठकी नतनीको देखा तो ज्ञात हुआ कि वह (बेटीकी बेटी) दैवी बालक-बालिकाओंकी श्रेणीमें है । चार वर्षकी वह बच्ची उच्च स्वर्गलोककी साधिका है । रात्रिमें जब हम उनके घर, उनसे मिलने गए तो ज्ञात हुआ कि उन्होंने उसका नाम किसी फ्रेंच भाषाके अनुसार रखा था जिसका अर्थ भी सात्त्विक नहीं था । मैंने उन्हें बच्चोंका सात्त्विक नाम और वह विशेषकर वह शब्द संस्कृत या भारतीय भाषाके शब्द हों एवं उसका शास्त्र बताया और चूंकि वह बच्ची बहुत ही सात्त्विक है, ऐसेमें अयोग्य नामसे उसका प्रभा-मण्डल भी प्रभावित हो सकता है क्योंकि नामके साथ रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शक्ति सहवर्ती होती हैं । उस बच्चीमें शक्ति तत्त्व अभीसे क्रियाशील है । ऐसे दैवी बच्चोंकी यदि सात्त्विक रीतिसे लालन-पालन करते हैं और उन्हें बाल्यकालसे ही साधना उन्मुख करते हैं तो वे अपने परिजनोंके लिए भी अपनी साधनाके कारण सुख-शांति और ऐश्वर्य इत्यादि सब आकृष्ट कर लेते हैं ! यह सब सुननेके पश्चात उनकी बेटीने कहा,“ आपने पूर्णत: सत्य कहा है, यह जबसे आई है हमारे जीवनमें बहुत ही सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं, मैं इसके नाम परिवर्तित कर दूंगी ।” आगे उन्होंने बताया कि उनकी पुत्रीको बहुत अधिक कब्ज रहने लगा था; इतना कि कभी-कभी मलके साथ खून आ जाता था; किन्तु इसने अचानक ही पुदीना, गाजर और ऐसे सब्जियां कच्चा स्वतः ही लेकर खाने लगी जिससे उसका यह कष्ट समाप्त हो गया और आज भी वह स्वयं ही इसे खाती हैं । उनके नानाके कहा कि जब मैं त्रिफला लेती हूं तो यह भी उसे थोडा सा मुझसे लेकर प्रेमसे खा लेती हैं; जबकि वे उसका घोल बनाकर पीते हैं तब भी वह उसका सेवन कर लेती है ! वर्तमान कालमें दैवी बालकोंको अनिष्ट शक्तियां कष्ट देती हैं; क्योंकि घोर कलियुग चल रहा है; किन्तु अंतर्मनमें उनकी साधना चलनेके कारण वे अपने कष्टोंके उपाय भी स्वतः ही ढूंढ लेते हैं किन्तु इस हेतु उनका लालन-पालन सात्त्विक रीतिसे करना चाहिए और उनसे साधना करवाकर लेनी चाहिए । ऐसा माता-पिताने सन्तोंके शरणमें साधना करनी चाहिए जिससे ऐसे बच्चोंको वे योग्य दिशा दे सके ।
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