अग्निहोत्रकी भस्मका उपयोग कैसे करें ? (भाग-२)


अग्निहोत्रकी भस्मको स्नान करते समय भी उपयोग किया करें ! इससे आपपर अनिष्ट शक्तियोंद्वारा नित्य निर्मित किया जानेवाला आवरण नष्ट होगा । इस हेतु आप स्नानगृहमें जहां गोमूत्र और खडा लवण (समुद्री नमक) रखते हैं, वहीं अग्निहोत्रकी भस्म भी एक डिब्बेमें भरकरके रख लें !
स्नानसे पूर्व ‘बाल्टी’में एक चौथाई जलमें एक-एक चम्मच गोमूत्र और ‘नमक’ एवं पांच चुटकी अग्निहोत्रकी भस्म डालकर पहले स्नान करें, तत्पश्चात सामान्य जलसे स्नान करें ! यह क्रम सातत्यसे करें; क्योंकि वर्तमानकालमें अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट अपने चरमपर है एवं सभी साधकोंको इनके कारण विभिन्न प्रकारके कष्ट हो रहे हैं । ऐसा स्नान करनेसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक, तीनों स्तरपर लाभ मिलता है । यह स्नान हम अपने बच्चोंको भी करवा सकते हैं । अध्यात्ममें प्रगति हेतु वलयका शुद्ध होना अति आवश्यक होता है; किन्तु आज सभी घरोंमें योग्य साधना व धर्माचरण न करनेके कारण वास्तुमें भी अत्यधिक कष्ट होता है इससे भी वलयमें अशुद्धियां आती हैं । पुनः जब हम बाहर जाते हैं तो तमोगुणी क्षेत्र या व्यक्तिसे सम्पर्कमें आनेपर हमारे वलयमें अशुद्धियां निर्मित होने लगती हैं; इसलिए सन्त पद जबतक साध्य न हो, तबतक यह स्नानके समय ‘नमक’-गोमूत्र और भस्मका उपचार करते रहना चाहिए ।
स्नानसे पूर्व इस प्रकार प्रार्थना करें, “हे जल देवता ! आपके जलमें मिश्रित ‘नमक’-गोमूत्र एवं भस्मसे मुझपर आध्यात्मिक उपचार हो । मेरे शरीर, मन एवं बुद्धिके ऊपर अनिष्ट शक्तियोंद्वारा या मेरे रज-तम प्रधान आचरणद्वारा जो भी सूक्ष्म काला आवरण निर्मित हुआ है, वह नष्ट हो एवं मेरी साधनाको योग्य दिशा मिले, ऐसी आप कृपा करें !”
यदि आपको हमारी संस्थासे अग्निहोत्रकी भस्म चाहिए तो आप हमें अवश्य सम्पर्क कर सकते हैं ।



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