शुचितासे अग्निहोत्र करनेसे आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं ।
कुछ जिज्ञासु एवं साधक वैदिक उपासना पीठसे जुडकर अग्निहोत्र आरम्भ कर चुके हैं और कुछ करनेवाले हैं, ऐसेमें वे इससे सम्बन्धित प्रश्न पूछते हैं तो मैंने सोचा ऐसे प्रश्न अन्य लोगोंके भी मनमें हो सकते हैं; इसलिए उन्हें जो उत्तर दे रही हूं, वह यहां इस दैनिक वृत्तपत्रमें साझा कर रही हूं ।
प्रश्न : क्या सवेरे बिना स्नान किए, शौच आदिसे निवृत्त होकर हाथ-पांव धोकर भी अग्निहोत्र किया जा सकता है ? कृपया मार्गदर्शन करे !
उत्तर : वैदिक यज्ञ, एक कर्मकाण्ड है, शौचके पश्चात एवं रात्रिमें सोते समय सामान्य व्यक्तिका तमोगुणका आवरण बढ जाता है; इसलिए यदि रात्रिमें सोनेके पश्चात या शौच जाकर बिना स्नान किए अग्निहोत्र करेंगे तो आपको उस यज्ञसे मात्र ३०% ही लाभ मिलेगा ।
यदि हम शौच-अशौचका पालन किए बिना अग्निहोत्र जैसे पवित्र यज्ञ करते हैं तो उससे मात्र शारीरिक लाभ (१०%) होता है, वातावरणको स्थूल लाभ (२०%) होता है, वहीं शुचिता एवं भावके साथ करते हैं तो उसका आध्यात्मिक लाभ, जो ७०% होता है, वह भी प्राप्त होता है ।
अर्थात आप जितना अधिक वैदिक रीतिसे अर्थात शुचिताका पालन करते हुए इसे करेंगे, आपको उतना ही अधिक लाभ होगा । आध्यात्मिक लाभ न होनेसे इस अनुष्ठानको आप अधिक समयतक नहीं कर पाएंगे; क्योंकि अनिष्ट शक्तियां इसमें अडचनें निर्माण करेंगी या आपको आध्यात्मिक लाभ प्राप्त ही नहीं होने देंगी । साथ ही अग्नि देवताकी कृपा भी नहीं मिलेगी । मात्र कण्डे, घी और अक्षत जलानेसे आपको ‘ऑक्सीजन’ अधिक मिलेगी, वातावरणके कीटाणु नष्ट होंगे, शारीरिक कष्ट न्यून होंगे अर्थात स्थूल स्तरके लाभ होंगे । यज्ञसे यज्ञ देवता प्रसन्न होते हैं, अग्नि देव, सूर्य देवकी कृपा मिलती है, निष्पापत्व, सच्चरित्रता, जाग्रति, शत्रुविनाश, आत्मरक्षा, यश, तेजस्विता, वर्चस्विता, सद्विचार, सत्कर्म, इन्द्रियशक्ति, आनन्द, परिपूर्णता, आध्यात्मिक शक्ति आदिकी प्राप्ति अग्निहोत्रसे जो बताई गई है, वह नहीं मिलेगी अर्थात जो उसका मुख्य लाभ है, वह नहीं मिलेगा । और एक बातका ध्यान रखें ! आप जितनी श्रद्धासे उसे करेंगे, उसके भस्म या विभूतिमें भी उतनी ही शक्ति आ जाएगी ।
Leave a Reply