अहं निर्मूलन (भाग-४)


अहंके लक्षण – मनानुसार आचरण करना
        हमारे श्रीगुरुने हमें गुरुकृपा अनुसार साधना सिखाई और हमने उसी पद्धतिसे साधना करनेका प्रयास किया । उनकी आज्ञा अनुसार हम धर्मप्रसार करते थे और आज भी करते हैं । धर्मप्रसारके मध्य मैंने पाया कि वर्तमान कालमें सामान्य लोगोंमें मनमाना आचरण करनेका प्रमाण अभूत अधिक है ! बाल्याकालसे ही माता-पिता, गुरु आचार्य या अपने वयोवृद्धकी आज्ञाका पालनका संस्कार न होनेके कारण आज अधिकांश लोगोंमें अपने मनके अनुसार वर्तन करनेकी वृत्ति है और यही वृत्ति उनके साधनामें भी दृष्टिगोचर होती दिखाई देती है; इस कारण बहुत प्रयास करनेपर भी उनकी यथोचित अध्यात्मिक प्रगति नहीं होती है । आज्ञा पालन करने हेतु विनम्र होना होता है किन्तु जो मनमाना आचरण करते हैं उनमें विनम्रता नहीं होती है ! वे अपने जीवनके प्रत्येक निर्णयमें उन्हें क्या रुचिकर लगता है उसके अनुसार ही वर्तन करते हैं, वे किसीसे पूछते नहीं हैं; इसलिए अनेक बार उनका निर्णय अनुचित होता है ! वस्तुत: जिनमें मनमाना आचरण करनेकी वृत्ति होती है उनमें कुछ और दोष बहुत ही प्रबल होते  हैं, एक तो उनमें सुनने व सीखनेकी वृत्ति नहीं होती है, दूसरा वे घर-बाहर कहीं भी कार्यपद्धतिका पालन नहीं करते हैं और तीसरा उनमें परेच्छा अनुसार आचरण करनेकी वृत्ति नहीं होती है ! और यदि कोई उन्हें इन गुणोंके अनुसार उन्हें कुछ करने हेतु बार बार कहे तो उन्हें अगले व्यक्तिके प्रति प्रतिक्रया या क्रोध आता है ! ऐसे प्रवृत्तिके  व्यक्ति स्वकेंद्रित भी होते हैं ! ऐसे लोगोंको पुलिस या सेनाकी चाकरी करनेमें बहुत कठिनाई होती है । मेरे आचरणसे किसीको कष्ट हो सकता है यह भी वे विचार नहीं करते हैं । आजकी पीढीमें साधना व धर्मका संस्कार न होनेके कारण उनकी वृत्तिमें यह दुर्गुण आ चुका है और इस्ककरण उनका व्यष्टि जीवन तो प्रभावित होता ही है साथ ही वे कार्यक्षेत्रमें कार्य करते हैं वहां भी सभीको कष्ट होता है !
गुरुकृपायोगानुसार साधना तो ऐसे लोगोंसे होता ही नहीं है । वे अनेक वर्ष किसी गुरुके स्थूल शरणमें रहते हैं किन्तु अपनी प्रवृत्ति अनुरूप उन्हें जो अच्छा लगता है वे वही साधना करते हैं; इसलिए उनकी अपेक्षित प्रगति नहीं होती है ।


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