एक आनंदकी बात बताती हूं, मेरे लेखोंको पढने या ‘यूट्यूब’के वीडियोको देखनेके पश्चात कुछ समयसे कुछ अहिन्दू भी हमें पितृदोष निवारण हेतु सम्पर्क करने लगे हैं ! अर्थात अहिन्दुओंको यह समझमें आने लगा है कि वैदिक सनातन धर्मके सिद्धान्त सभी जीवात्माओंपर एक समान लागू होते हैं ! अर्थात आप पुनर्जन्म, वैदिक रीतिसे श्राद्ध या मृत्योपरान्तकी यात्राको मानें या न मानें या आपका धर्म या पंथ माने या न माने, यदि आपके पूर्वज अतृप्त हैं तो वे आपको कष्ट देंगे ही; इसलिए एक बार मेरे श्रीगुरुने कहा था कि जो नास्तिक हिन्दू मृत्योपरान्तकी यात्राको नहीं मानते हैं और ‘मेरा श्राद्ध नहीं करना’, ऐसा कहते हैं, उनका भी श्राद्ध उनके परिवारके सदस्योंने अवश्य करना चाहिए; क्योंकि मृत्यु उपरान्त जब नास्तिकोंको इस तथ्यका ज्ञान होता है तो वे इस सत्यको किसीको नहीं बता पाते हैं । उसीप्रकार जिन पन्थोंमें मृत्योपरान्तकी यात्राका शास्त्र अपूर्ण है, उनके यहां भी अतृप्त लिंगदेह अपने वंशजोंको कष्ट देती हैं । अर्थात आत्माका शास्त्र सभी जीवोंपर एक समान लागू होता है, उसे कोई धर्म या पन्थ माने या न माने !
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