नवम्बर २५, २०१८
राम मन्दिर निर्माणको लेकर अयोध्यामें धर्म सभाके नामपर विश्व हिन्दू परिषदके शक्ति परीक्षण और शिवसेनाकी गतिविधियोंके मध्य ‘आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड’ने इसे उच्चतम न्यायालयके लिए चुनौती बताते हुए आज कहा कि प्रकरण एक मस्जिदके देनेका नहीं है, बल्कि सिद्धान्तोंका है, कि हम लोग इस देशमें धीरे-धीरे और कितनी मस्जिदें बलिदान करेंगे ?
समितिके महासचिव मौलाना वली रहमानीने अयोध्यामें हो रही ‘धर्म सभा’ और शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरेके दर्शन कार्यक्रमपर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि ऐसी स्थिति बनाई जा रही हैं, जिससे स्पष्ट रूपसे मुसलमानोंके विरुद्घ वातावरण बन रहा है ।
उन्होंने कहा कि अयोध्यामें हो रहा घटनाक्रम कई प्रकारकी आशंकाएं पैदा कर रहा है । शिवसेनाने मन्दिरको लेकर भाजपापर बढत प्राप्त करनेके लिए मोर्चा खोल लिया है । हो सकता है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे विवादित स्थलपर दर्शन करने जाएं और एक ईंट ले जाकर रख दें। बाद में यह दावा करें कि हमने मन्दिर निर्माणका कार्य आरम्भ कर दिया है । इससे स्थिति खराब हो सकती हैं ।
मौलाना रहमानीने कहा कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादवने अयोध्यामें सेना तैनात करनेकी जो मांग की है, वह अनुचित नहीं है । विशेषतया उत्तर प्रदेशमें पुलिसकी जिसप्रकारकी भूमिका है और जिस ढंगसे वह मुसलमानोंके प्रति पूर्वाग्रहपूर्ण कार्यवाही कर रही है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि अखिलेश पुलिससे निराश हो चुके हैं; इसीलिए उन्होंने अयोध्यामें सेना तैनात करनेकी मांग की है । यदि कहीं कोई साम्प्रदायिक घटना होगी तो उसका उत्तरदायी केवल शासन ही होगा ।
रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद प्रकरणके मुद्दई हाजी महबूबद्वारा वार्ताकेद्वारा प्रकरणके हलकी श्रीश्री रविशंकरके प्रयासोंका समर्थन किए जानेके बारेमें समितिके महासचिवने कहा कि जहां तक वार्ताका प्रकरण है तो बात यह है कि हमसे यही कहा जाता है कि आप अयोध्यासे बाहर मस्जिद बनाएं । यह तो आदेश देने वाली बात हुई ! ‘कुछ तुम पीछे हटो, कुछ हम हटें’ वाली कोई बात ही नहीं होती !
उन्होंने कहा,”प्रकरण एक मस्जिदके देनेका भी नहीं है, वरन् सिद्धान्तोंका है कि हम लोग इस देशमें धीरे-धीरे और कितनी मस्जिदें बलिदान करेंगे । यदि हम किसी एक पक्षसे वार्ता करें तो कल उसे हटा दिया जाएगा, और दूसरे लोग खडे हो जाएंगे ।”
मौलाना रहमानीने कहा, “यदि आज बाबरी मस्जिदके बारेमें कोई सन्धि की जाए तो उसमें कई हानियां हैं । प्रथम यह कि तब कहा जाएगा कि यदि मुसलमान एक मस्जिद छोड सकते हैं तो दूसरी, तीसरी, चौथी क्यों नहीं ? दूसरा, यदि अधिकतर मुस्लिम पक्षकार मस्जिदकी भूमि देनेकी सन्धिपर हस्ताक्षर कर भी देते हैं, तो क्या विश्वास है कि हस्ताक्षर न करने वाले लोग दूसरी मस्जिदके लिए हंगामा नहीं करेंगे ?”
“हम मौलानाजीसे पूछना चाहेंगें कि जब देवालयोंको तोडकर और ब्राह्मणोंकी निर्मम हत्याएं कर इन मस्जिदोंकी नींव रखी गई थी तो इसमें कौनसा इस्लामिक सिद्धान्त था ? जबकि इस्लाम कहता है कि किसीकी प्रार्थना स्थलको नष्ट कर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती ! तो हिन्दुओका अपने ही देशमें उन्हीं तोडे गए देवालयोंकी भूमि मांगना क्या अनुचित है ?”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : एबीपी न्यूज
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