ऐसे कर्म करें जिससे लौकिक एवं पारलौकिक दोनों सुख प्राप्त हो सके
महात्मा विदुर कहते हैं :-
दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत् ।
यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत् ॥
दिनभर ऐसे कर्म करो, जिससे रातमें सुखकी नींद आ सके । वैसे ही जीवनभर ऐसे कर्म करो, जिससे मृत्यु पश्चात सुख मिले अर्थात सद्गति प्राप्त हो ।
हिन्दू धर्मके प्रत्येक धर्मग्रन्थमें लौकिक और पारलौकिक कल्याणकी बहुत ही सुन्दर दिशा दी गई है; किन्तु क्षोभकी बात यह है कि यह सब स्वतन्त्रता पश्चात सभीको सिखाया ही नहीं गया; फलस्वरूप आधुनिक शिक्षा नीतिसे शिक्षित हिन्दू, मात्र और मात्र अपने लौकिक सुखकी बात सोचता है और उसमें भी धर्मका अधिष्ठान न होनेसे लौकिक सुख हेतु उसकेद्वारा किए गए प्रयत्न अधर्म आधारित होते हैं, इसकारण लौकिक और अलौकिक दोनों ही पतनका कारण बनते हैं । इस देशमें शिक्षित वर्गके भ्रष्टाचारी होनेके कारण उनके घरसे आए दिन, अनेक कोटि रुपये, आयकर अधिकारियोंद्वारा राजसात किया जाना इसका मात्र एक उदाहरण है । अतः लौकिक कल्याण एवं पारलौकिक कल्याण, दोनोंके लिए धर्मकी शिक्षा सभीको देना अति आवश्यक है ।
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