पूर्व केन्द्रीय अन्वेषण विभाग निदेशक वर्मापर रिश्वतखोरीका एक और आरोप, जांच रोकनेके लिए मांगे ३६ कोटि रुपये !!


दिसम्बर १, २०१८

कार्यभारसे मुक्त किए गए केन्द्रीय अन्वेषण विभाग (सीबीआइ) निदेशक आलोक वर्माकी मुश्किलें बढ रही हैं । शुक्रवार, ३० नवम्बरको हरियाणामें भूमि अधिग्रहणके एक प्रकरणमें किसानोंके अधिवक्ता जसबीर सिंह मलिकने उच्चतम न्यायालयमें सीबीआइके विशेष निदेशक राकेश अस्थानाकी सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मापर भ्रष्टाचारके आरोप लगाने वाली कैबिनेट सचिवसे की गई परिवादका सन्दर्भ देकर कहा कि उसमें सीबीआइ निदेशकको ३६ कोटि रुपये जांच बंद करनेके लिए देनेके आरोप लगाए गए हैं !

ऐसेमें सीबीआइका न्यायालयसे बार-बार जांच पूरी करनेके लिए समय मांगना संदेहमें आता है । किसानोंके अधिवक्ताके इस प्रकरणको न्यायालयने गम्भीर बताते हुए कहा कि वह इसप्रकार किसीको नहीं छोडेंगे । न्यायालयने अधिवक्ताको सम्बन्धित लिखितपत्र देनेका आदेश देते हुए जनवरीके दूसरे सप्ताहमें पुनः सुनवाईपर लगाए जानेका आदेश दिया ।

यह प्रकरण गुरूग्राममें व्यवसायिक विकास व रहनेके लिए २००९-२०१० में अधिग्रहित की गई १४०० एकड भूमिमें से हरियाणा सरकारद्वारा बादमें १३१३ एकड भूमि छोडे जानेका है । न्यायालयने गत वर्ष नवम्बरमें अधिग्रहित भूमि छोडे जानेके प्रकरणकी सीबीआइ जांचके आदेश दिए थे ताकि यह ज्ञात हो सके कि भूमि छोडनेके पीछे पैसेके लेनदेन या निर्माताओंसे सांठगांठ तो नहीं थी । न्यायालयने सीबीआइको जांच करके छह माहमें विवरण देनेको कहा था ।

शुक्रवारको प्रकरण न्यायमूर्ति अरुण मिश्राकी अध्यक्षता वाली पीठके समक्ष सुनवाईपर लगा था । सीबीआइकी ओरसे जांच पूर्ण करनेके लिए अन्तिम अवसर मांगते हुए कुछ और समय देनेकी याचिका दी गई । तभी भूस्वामी किसानोंकी ओरसे प्रस्तुत अधिवक्ता जसबीर सिंह मलिकने सीबीआइकी मांगपर आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि सीबीआइ पहले भी जांच पूरी करनेके लिए अतिरिक्त समय मांग चुकी है । समय मांगनेके पीछे सीबीआइकी मंशा ठीक नहीं है । उन्होंने अपनी आपत्तिका कारण बताते हुए कहा कि सीबीआइके विशेष निदेशकने (राकेश अस्थानाका नाम लिए बिना) गत २४ अगस्त २०१८ को कैबिनेट सचिवको पत्र लिखा है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि हरियाणा कैडरके आइएएस अधिकारीने सीबीआइ निदेशकको ३६ कोटि रुपये जांच बंद करनेके लिए दिए हैं ।

जसबीर सिंह मलिकने कहा कि उनके पास इससे सम्बन्धित पत्राचार है । हरियाणा सरकारके अधिवक्ताने भी जसबीर मलिककी बातका समर्थन किया । इसपर न्यायालयने कहा कि यह बहुत गम्भीर प्रकरण है । वह किसीको इसप्रकार नहीं छोडेंगे । न्यायालयने मलिकको सम्बन्धित लिखातपत्र प्रविष्ट करनेका निर्देश दिया और सुनवाई जनवरी तकके लिए टाल दी ।

प्रकरण गुडगांवके ५८ से ६७ सेक्टरके मध्य पडने वाले आठ गांव बादशाहपुर, बेहरामपुर, नागली उमारपुरा, तिगरा, उल्लावास, खादरपुर, घाटा और मडवासकी १४०० एकड भूमिका है । हरियाणा सरकारने २००९ में इन गावोंकी १४०० एकड भूमिके अधिग्रहणकी धारा-४ की अधिसूचना निकाली, किन्तु २०१० में केवल ८०० एकड भूमिके लिए ही धारा-६ की अधिसूचना जारी हुई, शेष भूमि छोड दी गई । इसके पश्चात मई २०१२ में १३१३ एकड भूमि छोड दी गई । इसपर जिन लोगोंकी भूमि अन्तत: अधिग्रहित कर अवार्ड जारी किया गया, उनमेंसे छह लोगोंने अधिग्रहणको उच्च न्यायालयमें चुनौती दी और उच्च न्यायालयने अधिग्रहण रद्द कर दिया था, जिसके विरुद्घ हरियाणा सरकार उच्चतम न्यायालय आयी थी ।

सुनवाईके मध्य किसानोंके अधिवक्ता जसबीर सिंह मलिकने आरोप लगाया था कि जिन लोगोंने निर्माताओंको भूमि दे दी है, उनकी भूमि अधिग्रहणसे छोड दी गई हैं और याचिकाकर्ताओंने निर्माताओंको भूमि नहीं दी थी, इसलिए उनकी भूमि अधिग्रहित कर ली गई । कहा कि सरकारकी निर्माताओंके साथ मिली भगत है । यद्यपि सरकारने आरोपोंका खण्डन किया था । तब न्यायालयने कहा था कि प्रकरण देखनेसे लगता है कि सरकारने शक्तियोंका दुरुपयोग किया है । सरकारने निर्माताओंको लाभ पहुंचानेके लिए प्रावधानोंका दुरुपयोग किया है । इसकी सीबीआइ जांच होनी चाहिए, ताकि ज्ञात हो सके कि जो भूमि छोडी गई उसमें पैसेका लेनदेन तो नहीं हुआ ? न्यायालयने प्रकरणकी जांच सीबीआइको सौंप दी थी और सरकारकी याचिका नकार दी थी ।

 

“क्या अब इस राष्ट्रमें साधारण नागरिकके लिए न्यायका कोई स्रोत नहीं है ? भ्रष्ट अधिकारियों, नेताओंने मिलकर इस राष्ट्रकी दुर्गति कर दी है कि साधारण नागरिक न्यायालयके नामसे भी भयभीत होता है और पुलिसके पास जानेसे अच्छा चुप रहनेमें भला मानता है; अतःअब हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना अनिवार्य है !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : जागरण



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