अलसीके औषधीय गुण (भाग -१)


अलसी या तीसी समशीतोष्ण प्रदेशोंका पौधा है । रेशेदार फसलोंमें इसका महत्वपूर्ण स्थान है। बीज निकालनेवाले देशोंमें भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा अर्जेण्टाइनाके नाम उल्लेखनीय हैं । अलसी भारतवर्षमें भी अनादी कालसे उगाया जा रहा है, इसका उल्लेख कुछ प्राचीन ग्रंथोंमें भी मिलता है । लाल, श्वेत तथा धूसर रंगके भेदसे इसकी तीन उपजातियां हैं | इसके पौधेकी दो अथवा ढाई फुट ऊंचे डालियां बंधती हैं जिनमें बीज विद्यमान रहता है । इन बीजोंसे तेल निकलता है। अलसीका तेल रंग, वारनिश (रोगन) और छापनेकी स्याही बनानेके उपयोगमें आता है। तेल निकालनेके पश्चात बची हुई सीठीको खली कहते हैं जिसका उपयोग पशु आहारके रूपमें किया जाता जो उनके लिए अत्यंत पौष्टिक भी होता है । इससे बहुधा बनाई जाती है ।
आयुर्वेदमें अलसीको मन्द गन्धयुक्त, मधुर, बलकारक, किन्चित कफवात-कारक, पित्तनाशक, स्निग्ध, पचनेमें भारी, गरम, पौष्टिक, कामोद्दीपक, पीठकी वेदना और सूजनको मिटानेवाली कहा गया है। इसमें अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ALA) नामक तत्व होता है जो एक प्रकारका ओमेगा-३ वसा अम्ल(फैटी एसिड) है और इसमें चिकित्सकीय गुण होते हैं । अलसीके बीजमें लौहतत्व, जिंक, पोटैशियम, फोस्फोरस, कैल्शियम, विटामिन सी, विटामिन ई, कैरोटीन तत्व पाए जाते हैं| इसमें १८ प्रतिशत प्रोटीन, २७ प्रतिशत फाइबर, १८ प्रतिशत ओमेगा-३ फैटी एसिड, लिगनेन व सभी विटामिन और खनिज लवणोंका भण्डार है । विज्ञानके अनुसंधानोंसे ज्ञात हुआ है कि अलसी कई प्रकारके असाध्य रोगों और सामान्य स्वास्थ्यके लिए बहुत लाभकारी है । विश्वके अनेक देशोंमें अलसी लोकप्रिय और स्वास्थ्यप्रद आहारके रूपमे जानी जाती है |
औषधीय गुण
१. मूत्र रोगोंमें – इसके बीजोंको उष्ण जलमें उबालकर या इसके साथ एक तिहाई भाग मुलेठीका चूर्ण मिलाकर काढा बनाकर पीनेसे मूत्र सम्बन्धित रोगोंमें लाभ होता है ।
२. हृदय रोगोमें – हृदयको स्वस्थ रखनेमें अलसीका उपयोग बहुत अच्छा सिद्ध होता है । अनियमित खानपान व वसायुक्त भोजनसे हृदयके रोग होनेका भय रहता है । अलसीमें पाया जानेवाला ओमेगा-३ वसा अम्ल(फैटी एसिड) रक्त नलिकाओंमें वसाके जमावको रोकता है । अलसीके बीजसे बनी चीजें हृदयके विकार दूर करनेमें अत्यधिक लाभप्रद हैं ।
ओमेगा-३ फैटी एसिड हृदयाघात (हर्ट अटैक) आशंकाको न्यून करता है । यह धमनियोंके फैलावमें सहायता करता है जिससे उनमें रक्तका प्रवाह सही ढंगसे हो सके, लेकिन ओमेगा-३ फैटी एसिड हमारे शरीरमें नहीं बनता है इसे भोजनके माध्यमसे ही ग्रहण करना होता है। शाकाहारियोंके लिए अलसी ओमेगा-३ एसिडका सबसे अच्छा स्रोत है; क्योंकि मांसाहारियोंको तो यह एसिड मछलीसे मिल जाता है ।
३. रेशेका (फाइबर ) अच्छा स्रोत अलसीके सबसे असाधारण लाभोंमेंसे एक यह है कि  इसमे उच्च स्तरमें म्यूसीजियम गम सामग्री हैं। म्यूसीज एक जेल बनानेवाला रेशा (फाइबर) है जो जलमें घुलनशील है । म्यूसीज पेटमें भोजनको छोटी आंतमें बहुत शीघ्रतासे खाली करनेसे बचा सकता है जो पोषक तत्व अवशोषणको बढा सकता है ।
साथ ही, दोनों घुलनशील और अघुलनशील रेशे (फाइबर)में अलसी अत्यन्त उच्च है जो बृहदान्त्र विषाक्तता, वसा हानिको न्यून कर सकते हैं ।
४. भार न्यून करनेके लिए हम जानते हैं कि अलसी स्वस्थ वसा और रेशेसे (फाइबरसे) भरपूर है, इससे अल्प भोजनमें संतुष्टि अनुभव होगा जिससे आप कुल मिलाकर कम कैलोरी खा सकेंगे, जिससे भार न्यून हो सकता है । ए.एल.ए वसा भी सूजनको न्यून करनेमें सहायता कर सकता है ।
५. पित्त-सांद्रवके(कोलेस्ट्रॉलके) स्तरको बनाए रखनेके लिए अलसी बीजकी घुलनशील फाइबर सामग्री पाचन तन्त्रमें वसा और पित्त-सांद्रवको जालमें डालती है जिससे इसे अवशोषित नहीं किया जा सके । घुलनशील फाइबर पित्तको भी फंसाता है, जो पित्ताशयकी थैलीमें पित्त-सांद्रवसे बना होता है ।
पित्तको पुनः पाचन तन्त्रके माध्यमसे उत्सर्जित किया जाता है, जिससे शरीरको और पित्त बनानेके लिए विवश किया जाता है । इससे रक्तमें अतिरिक्त पित्त-सांद्रवका व्यय होता है और कुल पित्त-सांद्रव कम होता है ।६. कर्करोगके (कैंसर) लिए अलसीमें एंटीऑक्सीडेंट कर्करोगसे सुरक्षा प्रदान करते हैं । अध्ययनोंसे यह निष्कर्ष निकाला गया है कि अलसी स्तन,  पुरूष ग्रंथि (प्रोस्टेट) और उदरके कर्क रोगके विकासको न्यून कर सकती हैं । अलसीमें उपस्थित लिग्नांसमें प्रतिजन गुण होते हैं और ट्यूमरद्वारा नए रक्त कोशिकाओंके निर्माणको रोकते हैं ।
अलसीका सेवन स्तनके कर्क रोगके रोगियोंमें जीवित रहनेकी दरमें वृद्धि कर सकती है । रोगियोंको ३ चम्मच अलसीका तेल पनीरमें मिलाकर उसमें सूखे मेवे मिलाकर देने चाहिए । (क्रमश:)

 

७. त्वचाके लिए अलसी और इसके तेलमें कई त्वचाके अनुकूल पोषक तत्व होते हैं जो त्वचाके स्वास्थ्यमें सुधार करनेमें सहायता कर सकते हैं । लिग्नान और ओमेगा ३ फैटी एसिडके उच्च स्तर, स्वस्थ मल त्यागको बढाते हैं और त्वचा रोगोंको रोकते हैं । ओमेगा- ३ फैटी एसिड त्वचा कोशिकाओंके स्वस्थ विकासके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं । अलसीमें उपस्थित लिग्नांस शरीरमें विद्यमान डी.एन.एच.टी के स्तरको न्यून करके त्वचामें यथोचित सुधार करनेके लिए सहायता करते हैं।
अलसीका नियमित सेवन, त्वचाकी जलन, चकत्ते, सूजन और लालिमाको सफलतापूर्वक न्यून कर सकती है। अलसीमें आवश्यक फैटी एसिड त्वचाकी नमी बनाए रखती है । इस प्रकार मुंहासे, जिल्दकी सूजन और छालरोग जैसी त्वचाकी समस्याओंको रोकते है ।

बालोंके लिएअलसीमें विद्यमान ओमेगा-३ फैटी एसिडकी उच्च मात्रा बालोंके लोचमें वृद्धि करता है और उनके टूटनेकी सम्भावना न्यून करता है । अलसीके विरोधी गुण रूसी, एक्जिमा और अन्य स्कैल्प (सिरकी त्वचा) स्थितियोंकी सम्भावनाको न्यून करते हैं । अलसी खोपडीमें सीबमके उत्पादनको प्रोत्साहित करती हैं, इस प्रकार फलक और रूसीको रोकते हैं ।

पाचन सुधारे – यदि आप कब्जसे व्यथित रहते हैं और पाचन खराब रहता हो तो प्रातःकाल एक चम्मच अलसी खली पेट जलसे साथ ले लें और ४५ मिनिट कुछ न खाएं, इसका सेवन आपके पाचनको सुधारनेमें बहुत सहायक होगा; किन्तु साथ ही जल अधिक मात्रामें पीना न भूलें ।

 

श्वासरोगमें(दमा) लाभप्रद – अलसीमें श्वास रोगको ठीक करनेके गुण विद्यमान हैं । यदि आप श्वास रोगसे पीडित हैं तो इसके लिए अलसीके बीजको पीस कर जलमें मिला दें और १० घंटोंके लिए छोड दें। इस जलको नियमित रूपसे दिनमें तीन बार लेनेसे श्वासरोग न्यून हो जाता है । इसके साथ ही इस जलसे आपको खांसीमें भी लाभ मिलेगा ।



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