अन्नमें उपस्थित अन्नपूर्ण तत्त्वका सम्मान करने का महत्त्व !
कोरोना प्रकोपके कारण विश्वके २५ कोटि जनसंख्या भुखमरीसे आज त्रस्त है ! अभी तो मात्र तीन माह ही हुए है इस रोगको और कोई भी कह नहीं सकता है कि इसका अंत कब होगा ? इस आपातकालकी पूर्वसूचना देते हुए संत कहते थे कि अन्नका एक कण भी व्यर्थ नहीं करना चाहिए; किन्तु तब भी लोग अपने अहंमें ऐसा करते थे ! अब विश्वकी महाशक्तियां कही जानेवाली राष्ट्र भी स्वयंको इस परिस्थितिमें विवश अनुभव कर रहे हैं ! इसलिए हमारा शास्त्र कहता है कि जो अन्नमें उपस्थित अन्नपूर्ण तत्त्वका सम्मान करते हैं, उन्हें आपताकालमें कभी भूखे नहीं सोना पडता है ! आज संतोंकी वाणी एवं सनातन धर्मके तत्त्वका भान और तीव्रतासे होने लगा है !
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